सौंदर्य-शास्त्र | Saundarya Sastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34.96 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ हरद्वारी लाल शर्मा - Dr. Hardwari Lal Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है सौन्दयं-शास्त्र नवीन प्रदेशों में भ्रमण करते हैं । हमारे विचार और भाव भी हमें तललीन करने में सम होते हैं । अपने दैनिक जीवन में प्रत्यक्ष आदि का उपयोग प्रवृत्तियों की सफलता के लिये किया जाता है । हम सूर्योदय देखकर का में लग जाते हैं विद्युत् की चमचमाहुट देखकर शीघ्र सुरक्षित स्थान में चले जाते हैं कल्पना की सहायता से योजनाएँ बनाते हैं। परन्तु जब कभी सूर्योदय और विद्यूत् का साक्षात् अनुभव कल्पना स्मृति विचार और भावना-प्रवृत्ति को जन्म न देकर अपने रंग रूप भादि विशेष गुणों के द्वारा केवल भोग भौर रस का उद्रक करते हैं तो हमारे जगत् की ये साधारण वस्तुएँ अद्भुत आनन्द के मूलख्रोत-सी प्रतीत होने लगती हैं । उस समय हम इनको सुन्दर कहते हैं। सुन्दर वस्तुओं के इस सौन्दयं से हृदय आल्वाद पाता है जीवन की साधारण प्रवृत्तियाँ कुछ समय के लिये स्थगित हो जाती हूँ संघ रुक जाने से मन और शरीर की प्रणालिकाओं में नवीन रस का सचार होता हुआ प्रतीत होता है और आँखों में आनन्द के आँसू उमड़ उठते हैं । हमारी यह अनुभूति किसी वस्तु की अनुभूति से उत्पन्न आनन्द का नाम है । अपनी अनुभूति--प्रत्यक्ष स्मृति कल्पना आदि--द्वारा आनन्द को उत्पन्न करने वाले वस्तु के गुण को सौन्द्य और उस वस्तु को सुन्दर कहते हैं । सौन्दय॑ का अनुभव व्यापक और महत्त्वपूर्ण है। इससे हृदय सरस और जीवव उरर होता है बुद्धि को नवीन चेतना और कल्पना को सनीवता प्राप्त होती है। इस महत्वपूर्ण अनुभूति का अनुशीलन करने इसके स्वरूप भर स्वभाव को समझने जीवन की दूसरी अनुभूतियों के साथ इसका सम्बन्ध स्पष्ट करने तथा इसकी पुष्ट और रचनात्मक शक्ति को समझने के लिये जिससे कला का जन्म होता है हमें एक विशेष विचार-माला की आवश्यकता होती है । इस व्यवस्थित विचार-माला को हम सौन्दये-शास्त्र कहते हैं । सौन्दर्य॑-शास्त्र सौन्दयं की शास्त्तीय विवेचना है । यदि हम सुन्दर वस्तु को प्राकृतिक जगत्ु की वस्तु मानकर निरीक्षण प्रयोग आदि द्वारा उसके गुणों का विश्लेषण करें और सुन्दर कही जाने वाली वस्तुओं के सम्बन्ध में सामान्य नियमों की गवेषणा करें तो हमारे प्रयत्न से सौन्दर्य -विज्ञान प्राप्त होगा । उदाहरणायथें हम आकाश हरे वन जल-विस्तार दूर तक फैले हुए खेतों और मेंदानों को सुन्दर कहते हैं । इन वस्तुओं के विश्लेशण से एक बात स्पष्ट जानी जाती है कि ये प्रिय लगने वाले रंगों के विशाल और विस्तृत पदार्थ हैं । इनकी विशालता और तरलता में हमारे जीवन की प्रतिध्वनि मिलती है । अतः हमें ये सुन्दर प्रतीत होते हैं । अतएव सौन्दर्य-विज्ञान का निर्णय है कि वस्तुओं की
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