कृषि नवाचारों के विसरण में सेवा केन्द्रों की भूमिका | Role Of Service Centres In The Diffusion Of Agricultural Innovations
श्रेणी : भूगोल / Geography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
174 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय- प्रवेश
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भारत जैसे विकास शील अर्थ व्यवस्था वाले दैश में प्रमुख विकासात्मक समस्याएं
वितरण प्रकियाओं से सम्बन्धित होतीं हैँ। इस सम्बन्ध में किये गये अनेक अध्ययनों से यह
संकेत मिलता है कि ध्रुवीकृत विकास अथवा नगरीय औद्योगिक विकासोन्मुख उपागम से
समस्याओं कौ मात्रा मेँ वद्वि हुई है । इन वृद्धि ध्रुवो के माध्यम से शयद ही विकासात्मक
विसरण दूर-दराज स्थित गँवों तक प्राथमिक क्रिया में संलग्न ग्राम्य वासियों तक पहुंच सका
हो। इस क्षेत्र में यद्यपि ग्रामीण कृषि विकासोन्मुख उपागम ने आंशिक सफलता हांसिल की
हे फिर भी सम्पूर्ण ग्रामीण समाज के परिवर्तन में सफलता प्राप्त नहीं कर सका है क्योकि
विकास के संचालन के लिए गांव एक वास्तविक ईकाई सिद्ध नहीं हो सके हैँ । यही नहीं
उपर्युक्त उपागमों की विकासात्मक प्रक्रिया इतनी सुस्त है कि उनका प्रभाव क्षेत्र में बूँद-बूँद
टपकने की भाँति हैं। इन दोनों नीतियों ने ग्रामीण क्षेत्रों को मानवीय विकास कौ मुख्य धारा
की सीमा रेखा पर छोड़ दिया है तथा वास्तविक स्वदेशत्पन्न उत्तेजना एवं उपयुक्त तकनीक
को भी रोका है जो कि नवीन संगठनों या संस्थाओं के द्वारा स्थिर रूप से क्रियान्वित कराये
जा सकते थे तथा वे विकास को उत्पन्न तथा उसकी सहायता कर सकते थे (उरसं एवं मिश्र,
1979) 1 सेवा केन्द्रों अथवा छोटे तथा मध्यम कस्बों की रणनीति एक वैकल्पिक नीति के
रूप में सन्दर्भित की गयी हैं जो कि बहुचर्चित तथा बहु व्याख्यायित ऊपर से नीचें तथा नीचे
से ऊपर के उपागमों से अधिक स्पष्ट है। भारत जो प्रधानत: एक ग्रामीण तथा कृषि प्रधान देश.
है और जहाँ की अर्थव्यवस्था का प्रधान জীন कृषि है, में सेवा केन्द्रों को भूमिका बहुत ही
सजीव या महत्वपूर्णं है । यह ग्राम्य स्तर पर आवश्यक स्थानिक वस्तुओं के संचयन एवं
संचालन को सुगम बनाते हैँ तथा स्थानिक वस्तुओं को जन-जन तक पहुँचाने का सरल
माध्यम हैं। इतना ही नहीं यह सेवा केन्द्र स्थानिक विसरण प्रणाली में भी अभिकर्ता के रूप
में कार्य करते हैं। . ১3০2,
[1].
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