सर्व शिरोमणि सिद्धान्त सार | Sarv Siromani Sidhant Sar

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Sarv Siromani Sidhant Sar by महावीरप्रसाद पोद्दार - Mahaveerprasad podhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- प्रकाश १६९ (९) _ अथ तेजतत्तवकी महिमाव्णन। * तेजतत्त वायुसें उत्पन्नहै, जासें वायुजतेज, चैतन्यरूप सूर्यचन्द्रमा, तारेनका प्रकाश करनेवाला, पालक बिनाश- रूप सवका भस्म $रमेवारा,सवंकार्यकी सिद्धि करनेवाला, महातेजस्वी पराक्रमी है, रोम २ प्रकाशकी जीवनरूप, नामि-मुखनेन्रोंमें बिशेष रहनेवाला, जठरापिरूप, अन्नज- लका पाचन .करनेवाका; चार तरहका अन्न है। चाटन यानें चाटकरिके जो खायाजाय, चूंसना जो चूंसकर भोजन कियाजाय, चिशदन जो चिगेदकर खायाजाय, पीवन जो पीके भोजन कियाजाय,ये चारतरहके भोजनकों तेज पाच- न करनेंवालाहै और ब्राह्मणोंका अधि सर्बकाय॑ सिद्ध कतो हे 1 जाह्मण अपनीं यज्ञाभिको कदाचित्‌ न भुजने देवै सो बाह्मण कौन ! जो वडा उत्तम क्म कै, वडा उत्तम कर्म प्राणायाम है। सो प्राणायामकी सिद्धि नित्य यज्ञाभ्रिसेंही ' होती है। सों वा नित्ययज्ञा्निको न भजने देवै । सो नित्य- यज्ञाभ्नि कोन है! जठराभि हैःनाभि धक्तवेदी हैःनित्य भोज- न करना सोही आहुती है । याका सुजना यही हे कि अयुक्त भोजन कनेसै मन्द होजाती है सो जुक्तभोजन करै, जास , जगाहुईं रहे । जब वो बडा उत्तमकर्म प्राणायाम सिद्ध होता 'है योही कमेकी सिद्धस परमे-धरकी प्राप्ति होती है जीव-




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