सर्व शिरोमणि सिद्धान्त सार | Sarv Siromani Sidhant Sar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)- प्रकाश १६९ (९)
_ अथ तेजतत्तवकी महिमाव्णन।
* तेजतत्त वायुसें उत्पन्नहै, जासें वायुजतेज, चैतन्यरूप
सूर्यचन्द्रमा, तारेनका प्रकाश करनेवाला, पालक बिनाश-
रूप सवका भस्म $रमेवारा,सवंकार्यकी सिद्धि करनेवाला,
महातेजस्वी पराक्रमी है, रोम २ प्रकाशकी जीवनरूप,
नामि-मुखनेन्रोंमें बिशेष रहनेवाला, जठरापिरूप, अन्नज-
लका पाचन .करनेवाका; चार तरहका अन्न है। चाटन
यानें चाटकरिके जो खायाजाय, चूंसना जो चूंसकर भोजन
कियाजाय, चिशदन जो चिगेदकर खायाजाय, पीवन जो
पीके भोजन कियाजाय,ये चारतरहके भोजनकों तेज पाच-
न करनेंवालाहै और ब्राह्मणोंका अधि सर्बकाय॑ सिद्ध कतो
हे 1 जाह्मण अपनीं यज्ञाभिको कदाचित् न भुजने देवै सो
बाह्मण कौन ! जो वडा उत्तम क्म कै, वडा उत्तम कर्म
प्राणायाम है। सो प्राणायामकी सिद्धि नित्य यज्ञाभ्रिसेंही
' होती है। सों वा नित्ययज्ञा्निको न भजने देवै । सो नित्य-
यज्ञाभ्नि कोन है! जठराभि हैःनाभि धक्तवेदी हैःनित्य भोज-
न करना सोही आहुती है । याका सुजना यही हे कि अयुक्त
भोजन कनेसै मन्द होजाती है सो जुक्तभोजन करै, जास
, जगाहुईं रहे । जब वो बडा उत्तमकर्म प्राणायाम सिद्ध होता
'है योही कमेकी सिद्धस परमे-धरकी प्राप्ति होती है जीव-
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