शंकराचार्य | Shankaracharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 ৫ 4
লালাহ্হানউ হী দ্-হুদল ভান হীনা হ। সন্বাহহীনতী দক্া-
सुभूति मौर भन्तमें प्रदे परिणति दोती दै { आत्मदशन द्वाग ही
शुद्र आत्मा महान् आत्मा परिणत होता है। भूमा-रूपमें भूमा-भाच
धारण करता है (क्र-तुच्छ मानव ्रहमज्ञ होकर स्वयं ब्रह्म हो जाता
है | इसी छिये हिन्दू शा्ोमें लिखा है कि '्रक्षवित् प्रद्म भवति' |
श्र स्वामीने प्रक्षत्त-छामका यद्दी पथ प्रकट रूपमें मूह जगत्
के सामने प्रदर्शित किया है। 8सकी समस्त व्याख्या-विश्वचि आत्मा
फा यथार्थं स्वरूप जो भूमा-भाव श्रह्म रूप है, वही उन्होंने विदशद्
भावसे संसारको दिखाया दे ।
पात्चात्य विद्यनोंका शद्वर स्वामीसे आत्मद्शनके सम्बन्धमें मत
नहीं मिलता। उनका कहना है कि तत्त्वज्ञान और'ध्यान-धाग्णासे प्रकृष्ट
मनुष्यत्व होता दै, जो जीवनक्षा अन्तिम उदेश्य है।' परन्तु आत्मदर्शन
असम्भव है। उनका ऋहना है कि घिषय ओर विपयी एक नहीं हो
सकते। यह प्ररृतिके विरुद्ध है। वोध चुद्धि द्वारा त्रह्मके ज्ञानकी उपलब्धि
हो सकती है, परन्तु प्रद्मकी नहीं । किन्तु 'सेलि! आदि दाशनिकोंने
इस बातफो मान लिया है कि मानव-युद्धि ओर ईश्वर पर ही वस्तु है ।
क्षुद्र सीमावद्ध आत्माको परमात्मामे परिणत करना--अर्थात् भँ
स्वयं प्रह्म हूं' यह भाव लाभ करना, ( जिसको वैदिक भाषामे 'सोहं?
জীং 'तत्वमसि” भादि कहते हैं | ) हिन्दू धम अथवा वेदान्व मतका
प्रधान सिद्धान्त है । इसी सेद्धान्तिक सूत्रको लेकर भाधुनिक और
प्राचीन दर्शनों तथा दाशनिकोंने धर्मकी मित्ति प्रथित की है। इस
अमूल्य अपूर्वं वैदान्तिक दर्दीन और वेदान्तधर्मके आवि प्रचारक
स्वामी शङ्कराचार्य ही थे ।
अनेक छोर्गो का कृष्ना है कि शद्धर-स्वामीने केव श्॒ष्क ओर
नीरस ज्ञान-मागका प्रचार किया है । किन्तु यह भ्रम दै। उन द्वारा
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