ब्रह्मचर्य - साधन | Brahmcharya - Saadhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय १४
तैत्तिरीयोपनिषद् मे लिखा है-
शतं च स्वाध्यायप्रवचने ঘ | सत्य व स्वाध्यायप्रवचने च |
तपश्च स्वाध्यायप्रदचने चख । दमश्च स्वाध्यायप्रवचने च ।
समश्च स्वाध्यायप्रवचने च । अ्ग्नयरच स्वाध्यायप्रवचने च ।
भग्निहोश्रं च स्वाध्यायभ्रचने च । अतिथयर्च स्वाध्यायप्रवचने च ।
मारुपं च स्वाध्यायप्रवचने च । प्रलतश्वं स्वाध्यायप्रवचने च ।
प्रजातिश्च स्वाध्यायप्रवचने च | ;
अर्थात् यथार्थ आचरण से स्वाध्याय करे ( जो कुछ पढ़े-
बढ़ावे, सममे वैसा ही अपना आचरण वनावे ) सत्याचार
से स्वाध्याय करे ( केवल निर्दोष विद्याओं को ही पढ़े-पढ़ावे )॥
तप से स्वाध्याय करे ( तपस्वी अर्थात् धर्मानुष्ठान करते हुए
धमे-प्रंथो को पढ़े-्पढ़ावे )। दम से रवाध्याय करे ( बाह्य इंद्रियों
को चुरे आचरणों से रोककर पढ़े-पढ़ावे )। शाम से स्वाध्यांय
करे ( मन की वृत्तियों को सब प्रकार के दोषों से हटाकर पढ़ें-
पढ़ाबे) | अग्नि से स्वाध्याय करे। अग्निद्दोन्न से स्वाध्यायं किया
करे ( श्रम्तिदो्र-नित्यकमं करता हुआ स्वाध्याय करे )।
अतिथि से स्वाष्याय करे ( अतिथि का स्वागत-सल्कार करते
हुए पढ़ें-पढ़ाने )। मनुष्य से स्वाध्याय करे (मनुष्यों से
सद् व्यवहार करते हुए पदे-पदावे ) । प्रजा से स्वाध्याय करे
( संतान और राज्य एवं अधथीनों से यथायोग्य 'व्यवद्वार करता
हुआ स्वाध्याय करें) प्रजनन करता हुआ स्वाध्याय करे ( वीय.
रक्षा और वीय-बद्धि करता हुआ: पढ़े ) प्रजाति करते
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