हर्ष | Harsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.71 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है.
ठहरकर ) यदि राजपुत्र ने सिंहासन ग्रहण करना स्वीकार कर लिया तब
. तो कोई बात ही नहीं, परन्तु यदि उन्होंने यह न किया तो फिर हम सबोंको
अपने पद छोड़ने ही होंगे और ऐसी अवस्था में स्थाण्वीदवर के राज्य की
. क्या दशा होगी ?
अवन्ति--देखिए, महाबलाधिकृत, शताब्दियों से इस देश में प्रजा-
. तन्त्र सत्ता नहीं है। हमारी यह राज-सभा तथा इस सभा के सदृश जितनी
. भी राज-सभाएँ इस देश में हैं, वे सब एक प्रकार से राजाओं को मंत्रणामात्र
देने का अधिकार रखती हैं। राजा ही उन्हें नियुक्त और वे ही उनमें
परिवर्तन करते हैं। सम्पाटों और राजाओं के हाथों में सारी सत्ता के केन्द्री-
भूत होने के कारण प्रजा का राज-कार्यों में बहुत थोड़ा अनुराग रह गया
है। वह केवल वीर-पुजक हो गयी है और सच्चे वीर ही उसका उपयोग
करने की क्षमता रखते हैं। यही कारण हैं कि किसी भी वंश में वीर के न.
रहते ही सत्ता उस वंश के हाथ से दूसरे वंश के हाथ में तत्काल चली जाती.
है और जो भी राजा होता है प्रजा आँख मूँद कर उसका अनुगमन करती
है। हमारा स्थाण्वीदवर का राज्य भी आज: इसी परिस्थिति का आखेट हो
रहा है। हमारे राजा का वध हो गया है, परन्तु जिसने यह किया है उससे
प्रतिकार लेने में हम अपने को असम पाते हैं। इसीलिए न कि हमारे राज्य
पर इस समय किसी वीर राजा का छत्र नहीं, जो प्रजा के जन और धन का
_ उपयोग कर शत्रुओं को नीचा दिखा सके ? राज-सभा के सदस्यों की बात.
अ्रजा मानेगी ऐसा हम सदस्यों तक को विश्वास नहीं । क्या आप लोग समझते
हैं कि बिना राजा के हम राज्य-रक्षा कर सकेंगे? मुझे तो इसकी बहुत.
कम आशा है। यदि राज-सभा, बिना राजा के, शत्रु से बदला छेकर राज्य-
रक्षा कर सके तो इससे अच्छी कदाचित् कोई बात न होगी, क्योंकि यह, ..
पके मकार से ; शताब्दियों पूर्व इस देश में जो प्रजातंत्र थे, उनकी ओर
बढ़ना और किसी भी राजा का अनुगमन करनेवाली प्रजा की प्रवृत्ति के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...