कविवर बूचराज एवं उसके समकालीन कवि भाग 2 | Kabivar Buchraaj Evm Unke Samkalin Kabi Vol 2

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Kabivar Buchraaj Evm  Unke Samkalin Kabi Vol 2  by कस्तूरचंद कासलीवाल - Kasturchand Kasleeval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखक कौ झोर से हिन्दी साहित्य कितना विशाल एवं विविय बरक॑ है इसका अनुमान कन ही कठित है। इस हिन्दी सरहित्य को अंकुरित, भललवित एवं विरति कम्मे जे जैन कवियों ने जो योगदान दिया है उसके शर्ताभ को मी प्रकाशल হ मूल्यांकन नहीं हो सका हैं। काव्य के विविध दो में उन्‍होंने जो अपनी लेखती घलायी बह प्रदूभुत है । जैसेन्डैंशे वे घज्मात कवि हयारे. सामने जाते जाते हैं हम उनके महत्व से परिचित होते जाते हैं तथा হাজি জর্জ अगुली दबाने लगते हैं । प्रस्तुत पृष्प मेंसेक्श १५६१ से १६०० तक होने वाले ४० वर्षों के पांच प्रमुख कवियों का परिचय प्रस्तुत किया गया है | ये कवि हैं--भ्रह्म बूचराज, छीहल, चतुरुमल, गरारवददास एवं ठक्कुरसी | वैसे इन वर्षों में प्लौर भी कवि हुए जितकी संख्या १३ है। जितका संक्षिप्त परिक्षय प्रारम्भ में दिया गया है। लेकिन इस पांच कवियों को हम इन ४० वर्षों का प्रतिनिधि कवि कह सकते हैं। इन कवियों में से गारवदास को छोड़कर किसी ने भी यद्यपि प्रबन्ध काव्य नहीं लिखे किन्तु उस समय की सांग के भनुसार छोटे-छोटे काव्यों की रचना कर जन साधारण को हिन्दी की পীহ भाकषित ক্ষিমা | अभी तक इन कवियों के सामान्य परिचय के भतिरिक्त न उनका विस्तृत मूल्यांकन ही हो सका तथा ते उनकी मूल रचनाओं को पढ़ने का पाठकों को प्रवसर प्राप्त हो सका । इसलिए इन कबियों द्वारा रचित सभी रथताएँ जिनकी संझुया ४४ है प्रथम बार पाठकों के सम्मुख आा रही है। इनके अ्रतिरिक्त इतमें से कम से कम १५ रचनाएँ तो ऐसी हैं जिनका नासोल्लेख भी प्रथम बार ही प्राप्त होगा । हिन्दी साहित्य के इतिहास में संदत्‌ १५६१ से १६०० तक के काल को अक्ति काल माना है किन्तु जैन कवि किसी काल प्रयवा सीमा विशेष में नहीं बंधे । उन्होंने जन सामान्य को भ्र्छा से भच्छा साहित्य देने का प्रयास किया | ब्रह्म बूबराज रूपक कार्यों के निर्माता थे । उनका 'सयणजुजु्क” एवं 'संतोषजयतिलक्ु” दोनों ही सुन्दर एवं महत्वपूर्ो कूपक काव्य हैं। जिनका पाठक प्रस्तुत पुस्तक में रसास्वादनम कर सकेंगे । इसी तरह कूचराज की “चेतन धुदुगल धमाल” उत्तर» पत्युत्तर के रूप में लिक्षी हुई अहृत हो उत्तम रचना है। चेतन एवं पुदगल के मध्य




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