धर्म - मीमांसा भाग 1 | Dharm Mimansa Bhag 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Dharm Mimansa Bhag 1 by दरबारीलाल - Darbarilal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दरबारीलाल - Darbarilal

Add Infomation AboutDarbarilal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
घर्मका स्वरूप ७ ^ न ^. ~^” ^^ ^+. प॒र उन मित्रोकी हत्या करना क्या उचित था? जब हम उनकी हिंसा किये विना जीवित रह सकते थे, तव क्या हमे उनकी रक्षा न करना चाहिये थी. ? क्या यह तामसिकता हमारे अधःपतनका कारण न थी १ यही सोचकर महात्मा महावीर ओर महात्मा बुद्धने हिंसाके विरुद्र कान्ति की | एक समय जो उचित था या क्षन्तन्य था, दूसरे समयमें 'वही अनुचित था, पाप था, इसलिये उसके दूर करनेके लिए जो क्रान्ति हुईं वह धर्म कहलाई । हिंसा-अहिंसाके प्रश्चके साथ गो-वधके प्रश्रको ङे छीजिये। निःसन्देह किसी भी निरपराध प्राणीकी हत्या करना बडा मारी पाप है ओर हिन्दुस्थानमे गोवध करना तो बड़ेसे बड़ा पाप है। परन्तु मुसठ्मान धर्म जब और जहाँ पैदा हुआ वहाँकी दृश्टिसि हमें विचार करना चाहिए | महात्मा मुहम्मदके जमानेमे अरबकी बड़ी दुर्दशा थी । मूर्तियोके नामपर वहाँ मनुष्य-बध तक होता था। इसको दूर करनेके लिए उनने मूर्तियोंकोी हटा दिया। “न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी '-न मूर्त्तियाँ होंगी, न उनके नामपर बढि होगा। परन्तु इतनी विशाल क्रान्ति, छोग सह नहीं सकते थे | पात्रताके अनुसार ही सुधार होता है। इसलिएं मनुष्य-्बलि बन्द हुई और गो-बध आया । हिन्दुस्तानमे गो-बंश कृषिका एक मात्र सहायक होनेसे यहाँ उसका मूल्य अधिक है | इसीलिए गो-माता सरीखे शब्दकी उत्पत्ति यहाँ हुई है। परन्तु अरबमे कृषिके लिए गों-बंशकी आवश्य- कता नहीं है---बहाँ ऊँटोंसे खेती होती है। यदि बाले आदिको रोकनेके लिए मुहम्मद साहबने मूर्तियाँ हटा दीं, मनुष्यन्बध रोकनेके ভিত गो-बधका विधान किया, तो “सर्वनाश उपस्थित होनेपर आधिका




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now