बा और बपुकी शीतल छाया मे | Baa Aur Bapu Ki Shital Chaya Main

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Baa Aur Bapu Ki Shital Chaya Main by मनुबहन गाँधी - Manuben Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शीतल छायाम ७ तीक्ष्ण दृष्टि मेरे फ्रॉक पर पड़ी। तुरंत ही मुझसे कहने लगीं : “ बेटी ! जरा फ्रॉक तो दिखा। ये धब्बे नहीं रहने चाहिये। मालूम होता ই तुझे कपड़े धोना नहीं आता । कराचीमें तो नौकर घोते होंगे न? हम रोग जव तेरे वरावर थीं, तव तो हमारी शादी हो चुकी थी। मां-बाप नौकर रखकर आजकलकी लड़कियोंको पंगु बना देते हँ। ला में मिटा दूं, जिसमें बहुत सावुनका काम' नहीं। हाथसे खूब मसलना चाहिये। तू रोज कपड़े धोकर मुझे बताया कर। दो तीन दिनमें सब ठीक हो जायगा । ये सब बातें यहां अधिक सीखनी होंगी । पढ़ना भी आना चाहिये और प्रत्येक काम भी आना चाहिये।” बापूजी सुबह वाके पास छोड़ गये थे तवसे मं अूनके पास गयी नहीं थी। शामको खानेकी घंटीके समय (पांच वजे) वापूजीको लानेके लिओ वाने जबरदस्ती मुझे भेजा । ( बापुजी दोनों समय सामूहिक भोजनालल्‍यमें खाने आते थे।) बापूजीके पास गओऔ तो वे बोले: “अरे, यह लड़कीसे ओकदम' स्त्री क्व वन गी? आज यह साड़ी क्‍यों पहनी हूँ? यह्‌ तो बाकी मालूम होती है। खुद अपनेको संभाल सके, जितनी भी शक्ति तुक्षमं नहीं ह; फिर अूपरसे जितना भार क्यो लाद रही है? क्या तेरे पास फ्रॉक नहीं हैं? न हो तो सिलवा दूं। ” मेंने कहा: “वबापूजी, मोटीवाकों फ्रॉक पसन्द नहीं है। अन्हींने मुझे साड़ी पहननेके लिओ कहा, और अपनी साड़ी दी। मेने सुबहसे ही साड़ी पहनी है।” जिस तरह वातें करते करते हम' वरामदे तक पहुंचे। वा बाहर आओ तो वापूजीने वात छेड़ी : “ भिस वेचारीको साड़ी किस लिओ पहनाओ है? भछे ही यह १४ वर्षकी हो, परंतु में तो अिसे ११-१२ वर्षकी ही मानता हूं। जिसे आजादीसे दौड़ने- खेलनेका मौका मिलना चाहिये । यह अपनी साड़ी धो भी नहीं सकती। मुझे पता होता तो सुबह ही निकलवा देता।” वा वापूजी पर नाराज होकर बोलीं: “में फ्रॉक तो हरग्रिज “नहीं पहनने दूंगी । लड़कियोंके बारेमें में अधिक जानती हूं । साड़ी आजके. ही लिओ है, कलसे ओढ़नी दे दूंगी। छड़कीको मेरे पास रखा




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