आश्रम की बहनों को | Ashram Ki Bahano Ko
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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काका कालेलकर - Kaka Kalelkar
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रामनारायण चौधरी - Ramanarayan Chaudhari
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मक्तिकी अितनी गहरी मीमांसा हमें ओर कहीं शायद ही मिले |
धर्मका अर्थ हैं फपरोपकार | जितना कहनेके बाद
परोपकारसे होनेब्राले अहंकार ओर मैं-पनको निकाछ ही डालना
चाहिये, यह कहनेका छुन्होंने ओके भी मोका नहीं छोड़ा ।
वह यहाँ तक कि गंगा नदी बरसातमें कीमती ओर बहुतमा
कीचड़ फैछाकर हमारी जमीनको अपजाओ बनाती है ओर आगे
बहती है | जितना कहनेके बाद व्रापू्नी ओर् भी नोड्ते
हैं. कि “अपना किया हुआ अपकार ह्ृतज्ञ वाल्कॉके मुँहसे
घुनना पड़े, जिस संकोचके कारण गंगा तुरन्त भाग जाती है!
हमारे देशमें जहाँ देखो वहीं सफाओकी कमी हैं | नदीके
घाठ पर, शहरकी गलियेमिं--- जितना ही नहीं, मगर भगवानके
मन्दिरोंमें भी अस्वच्छता ओर गंदगी फैडी हुआ होती है. | मानो
घरके बाहर हमारी कोओ जिम्मेदारी ही नहीं है।
जिन पत्रोंमें शुरूसे आखिर तक हृदयकी दिक्षाक्रौ दी
व्रात हैं। सदृवर्तन+अक्षरज्ञान- शिक्षा | जितनी आसान
व्याख्या करके यह समझाया हैं कि निभेयता, सेवानिष्ठा
ओर पविन्नतामें ही सारा सदूवतन आ जाता है.। सेवा करनी
है तो वह “आत्मवत् सर्वेमूतेपु ” बनकर करनी है । ओर सेवा
करते इञ यदि प्रार्थना छूठ भी जाय, तो बह छूटी नहीं নর
जा सकती। क्योंकि वापूजी सदा यह शुद्ध दृष्टि देनेसे नहीं चूकते
कि संकटके अवसर पर प्रार्थना कर्तव्यपालनमें समा जाती है।
बापूजी सफर करते हों ओर देखे हओ भव्य या आकर्षक
प्रसंगोका वर्णन वे न करें, यह हो ही कैसे सकता हैं? ओर
देशजाग्रतिका महत् कार्य सिर पर टेनेके.वाद् अक श्षण
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