यह तो सार्वजनिक पैसा है | Yah To Sarvajanik Paisa Hai

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Yah To Sarvajanik Paisa Hai by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यहां कोई अछत है क्या? सौराष्ट्‌ के एक गाव की एक समभा में बोलते हुए गाधीजी ने अस्पृश्यता के प्रश्त की चर्चा भी की । लेकिन वह यही नही रुक गये । अन्त में पूछा, “यहां कोई अछत है क्या ? ” उत्तर मिला, “जीहां, है। वे उस किनारे पर बैठे हुए है ।” गाधीजी के सामने फल और सूखे मेवों से भरा एक थाल रखा हुआ था । उसीकी ओर इशारा करते हुए बोले, “इसे उन बच्चों मे बांट दो, मेरी तरफ से नही, अपनी ओर से। अपने प्रेम और इस बात की निशज्ञानी के तौर पर कि आप उनके प्रति अच्छा व्यवहार करना चाहते हैं बांट दीजिए ।” एक सवर्ण व्यक्ति ने कहा, “क्या मुझे प्रसाद के तौर पर थोड़ा-सा नही मिल सकता ? मैं आपका शिष्य हूं। गांधीजी ने उत्तर दिया, “तुम फूल ले जा सकते हो । फल और मेवा तो अछुतो के लिए ही है।” तबतक अछूतों के बच्चे उस किनारे से गाधीजी के पास आा गये थे। सभा में कुछ खलबली-सी मची । कुछ बूढ़ों नें कहा, “गांव में कलयुग आगया है, कलयुग 1” लेकित किसीने गाधीजी का विरोध नहीं किया और उनको विदा करते समय उल्लास की कमी भी उन्होंने नही दिखाई |




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