महाभारत-कथा | Mahabharat-Katha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंत्रणा ३ सुनी । कृष्ण ने जो उपाय बताया उससे युधिष्ठिर और दुर्योधन दोनों की ही भलाई हो सकती हं । इसके लिए म कृष्ण को साधुवाद दिये बिना नहीं रह सकता । आप लोग जानते ही ह कि कुंती के पुत्रों को आधा राज्य प्लिला था। उन्होंने उसे जुए में खो दिया और अब फिर उसे प्राप्त करना चाहते हे। यदि शांतिपूर्ण ढंग से--बिना युद्ध किये ही--वे अपना राज्य प्राप्त कर सकं तो उससे न केवल पांडवों की बल्कि दुर्योधन एवं सारी प्रजा को भलाई ही होगी । सब सुख-चन से रह सकेंगे, इसमें कोई संदेह ही नहीं । इसके लिए युधिष्ठिर को ओर से दुयोधन के पास एक एसा दूत भेजा जाना चाहिए जो दोनों के बीच संधि कराने की योग्यता ओर सामथ्यं रखता हो । युधिष्ठिर कौ प्राथना दुयोधिन को सुनाकर उनका उत्तर युधिष्ठिर को बताने से पहले उसे भीष्म, द्रोण, विदुर, कृपाचाय, अहवत्थामा, कणं एवं शक्नि आदि सभी संश्रांत व्यक्तियों से सलाह-मरशविरा करना होगा । उसे बडी नम्रता के साथ युधिष्ठिर की बात सब को सुनानी होगी । चाहे जसौ उत्तेजना का अवसर आवे, पर वह क्रोध मे न आए । जरण्क्कनेहीसे काम बनेगा, तनने से नहीं । यथिष्टिर ने स्वेच्छा से ज खेला ओर राज्य गंवाया | बहत से मित्रों ने उन्हें मना किया था, पर यधिष्ठिर ने किसी की न सुनी । अपनी जिद पर अड़े रहे ओर सबको सुनी-अनसुनी कर के जुआ खेलने गयं । यह भी युधिष्ठिर से छिपा नहीं था कि शकुनि जुए का मंजा हुआ खिलाड़ी है और वे इस खेल में उसके आगे ठहर नहीं सकते थे। शकुनि कौ निपुणता ओर अपने नौसिखुएपन को भलोी भांति जानते हुए भी युधिष्ठिर ने बुलावा मान लिया ओर खेल मे हार गये। इसलिए अब युधिष्ठिरको धतराष्ट्‌ ओर उनके पुत्रों के आगे नम्नता के साथ जरा झुक कर ही राज्य वापस दिलाने की प्राथना करनी होगी। इसके किए मेरी राय में ऐसा व्यक्ति दृत बन कर जाय जो शांति-प्रिय एवं मृदुभाषी हो, युद्ध-प्रिय न हो। उसका उद्देश्य किसी-न-किसी प्रकार समझौता कराना ही हो। हे राजा-गण ! दुर्वोधन को सोठो बातों से समझाने का प्रयत्न कीजिए । शांति-पूर्ण ढंग से जो संपत्ति मिल जाए वही सुख-प्रद होगी। युद्ध चाहे




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