सगर - विजय | Sagar Vijay
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ सगर-विजय [ पहला
ভর্তির /६७./७४ / ७६ ४७ / ४ / ७ ०५८९ ৯ পা পাটি তাস /६४/७ /४ /७४ /४ /७/ ४ /४ /४/ /६४० পাটি ६४ ४ “४ / ६४ /७ /४ /“४७४ / ८४ ¬ ८ ८५ ८ + ~+ ~+ ^+ ५
पहला--नहीं मिला, ज़रूर मिलेगा | उसे मिलना ही चाहिये ।
विशालाक्षी उसके साथ है उसे मिलना ही होगा। आओ ढूँढें !
( दोनों एक ओर चले जाते हैं । बाहु वहीं वृक्ष की श्रोट से निकल
कर एक तरफ़ बेठ जाते हैं )
बाहु--ओ बड़ी पीड़ा है। (कमजोरी से लेट जाता है। त्रिपुर घूमता
हुआ उती स्थान पर आ निकलता है । चलते चलते उस का पैर बाहु के
शरीर से छू जाता है ) ओः ! जीवन स्वप्त है, मृत्यु जागरण ! आज
मेरे जागरण का त्राह्ममुहूत है ।
त्रिपुर--यह कोन ! ( त्रिपुर ठिठक कर उधर देखता है ) जीवन
स्वप्न है ओर मृत्यु जागरण | अरे, यह तो महाराज নান্ত ই!
( बाहु के पास जाता है ओर उन्हें आँख बन्द किये हुए देख कर)
क्या कहा, जीवन स्वप्न है ओर मृत्यु जागरण | महाराज, महाराज !
बाहु--( अंखे खोल कर ) (महाराजः कह कर तुम किसे पुकारते
हो ? महाराज एक स्वप्न था जो तुषार-कर्णों की तरह ढल कर सूख
गया | महाराज एक स्वप्त था जो फूल की तरह खिला ओर डाल
ते टट गया । श्राह, यदि बसन्त को पतभड़ का ज्ञान होता !
त्रिपुर--( बाहु के शरीर पर हाथ फेरता हुआ ) बड़ा अन्याय
है, परन्तु यह कोन जानता हैं, न्याय-अ्रन्याय क्या है !
কি কি
बाहु--उधर प्रतीक्षा में डूबी रानी मेरी राह देख रही होगी !
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