सरदार भगत सिंह | Sardar Bhagat Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कक ७ [१ पत्र-पत्रिकाओं के आधार पर ओर अधिकांश मेरे (भविष्यः के আলবানী पन्‍ने हैं । लाहदोर षड़यन्त्र की कायवादह्दों का अधिकांश विवरण स्वयं उसके नायकों द्वारा सम्यादित है। जिन दिनों “भविष्य प्रकाशित द्वो रहा था उन दिनों भी इस षड़यन्त्र केस के कुछ फरार अभियुक्त अपना नाम तथा भेष बदल कर इसके सम्पादक्रीय विभाग में काम करते थे , जिसका पता केवल मुझे, मेरी धमंपत्नी तथा मेरी साली-मात्र को था। मेरे विद।सघाती भाई, नन्दगोपाल सिद-तक को इस बात का पता नहीं था, ओर यह ठीक ही हुश्या, नहीं तो शायद मैं आज अण्डमन में होता। जिम प्रकार इख श्रस्तीन के सोप ने मेरा खवेनाश किया, उसे देखते हुए वह यहं अनिष्ट भी सहज द्वो कर सकता था। पाठकों को विस्मरण न करना चाद्दिए, कि वह ऑडिनेन्स-युग था। मुर्गी के अण्डों की भाँति उस जमाने के वॉयसरॉय ओर गवर्नर-जनरल लॉड विलिहडन प्रायः नित्य द्वी एक नया ऑडि- नेन्स प्रसव किया करते थे। मेरी कोठो के चारों ओर २४ घण्टे खुफिया पुलिस के भूत मेंडराया करते । बाद में तो उन्होंने कोठी के सामने अपने खीमे-तक गाड़ लिए ये । कद्टी भी कोई बम फटा अथ वा कोई राजनेतिकन्द्॒त्या हुई, कि इलाहाबाद में सब से ঘহিবী मेरी तलाशी हुआ करती थी । यदि मैं भूल नहीं करता, तो कुल मिला कर क़रीब ४० बार भेरे यहाँ पुलिस ने तलाशियाँ लो द्वोंगी । क्रिसी-किसी बार तो पुलिस के सेकढ़ों सशस्त्र सिपाही तथा ऑफिसर मेरी कोठी का रातों-रात घेरा ढाल लिया करते ओर दिन निकलते द्दी तलाशी शुरू हो जाती । भविष्य के कई सम्पादक गिर. फ़्तार हुए ओर इसके कदं ङ्कु जन्त भीकर लिए गए । एक एसे कटषित वातावरण में इस प्रकार की खतरनाक सामग्रो को सुरक्षित रखना कितना




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