गुरु घंटाल | Guru Ghantal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হাক প্রান্ত. ` १३
क्रिक्र में आये हैं कि किसी न किसी से कुछ भेद् बेगम জান্তা
का लेना चाहिये। मामठा बहुत मुश्किक था और काम-
याबी कठिन, मगर दृकीम सादब को .अपनी सूरत के सौंदये,
अपने सत्रभाव, शानदारी. और. खुश-वज़ई पर पूरा भरोसा था।
किसी दूसरे ®ो इस मामले का भेद देना भी मंजूर न था इसछिये
भौके वारदात की देखभाल करने के छिये ख़ुद दी तशरीफ लाये
हैं। एक नोकर पीछे-पीछे है। ब्योंद्दी महरी दरवाजे से निकछी,
हकीस साहब ने आादभी की तरफ मुड़कर देखा। बह हाथ बः
हुए आगे को बढ़ा । | `
हकीम पाहब--मगीवरश ।
नवीचरूर--दजुर । ।
हकीम साहब--पेखो इप्त महरी फो पहचान छौ ।
| नधीबख्या--( जरा ज़ोर से ) यध मददरी,) इसको तो. में
जानता हूँ । ০৫8,
हकीस साहब--मियां चुप रहो । फोई सुर न के । हा यही
महरी । लुम इते क्या जात्तो १. ` ~.
,._ नवीबझ्श--हसंसे आपको क्या भत्तठव। आपका कि.
फिसी तरह दो जाथगा |... त व भ,
अच्छा अब हकीस साहब भर मियां नवीयसश क्रो' यहीं
छोड़िये । एक जरा छोटे नवाम साहब की सहक्लिक्ष का रंग देखिये।
. इस बक्त् दीवानखाने में विराजमान है बैठने का फमरा
दुलद्दिन को तरद सजा हुआ है। फ़शे फरूश, शोशे ভার जो
चीज है ऊाजवाघ दै ` सो इसमें छोदे नयाय सुहव के सखी
और शऊरं को-कोर वखक है? बडे नवाब के बैठने का कमर .
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