गुरु घंटाल | Guru Ghantal

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Guru Ghantal by केदार नाथ भट्ट - Kedar Nath Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হাক প্রান্ত. ` १३ क्रिक्र में आये हैं कि किसी न किसी से कुछ भेद्‌ बेगम জান্তা का लेना चाहिये। मामठा बहुत मुश्किक था और काम- याबी कठिन, मगर दृकीम सादब को .अपनी सूरत के सौंदये, अपने सत्रभाव, शानदारी. और. खुश-वज़ई पर पूरा भरोसा था। किसी दूसरे ®ो इस मामले का भेद देना भी मंजूर न था इसछिये भौके वारदात की देखभाल करने के छिये ख़ुद दी तशरीफ लाये हैं। एक नोकर पीछे-पीछे है। ब्योंद्दी महरी दरवाजे से निकछी, हकीस साहब ने आादभी की तरफ मुड़कर देखा। बह हाथ बः हुए आगे को बढ़ा । | ` हकीम पाहब--मगीवरश । नवीचरूर--दजुर । । हकीम साहब--पेखो इप्त महरी फो पहचान छौ । | नधीबख्या--( जरा ज़ोर से ) यध मददरी,) इसको तो. में जानता हूँ । ০৫8, हकीस साहब--मियां चुप रहो । फोई सुर न के । हा यही महरी । लुम इते क्या जात्तो १. ` ~. ,._ नवीबझ्श--हसंसे आपको क्‍या भत्तठव। आपका कि. फिसी तरह दो जाथगा |... त व भ, अच्छा अब हकीस साहब भर मियां नवीयसश क्रो' यहीं छोड़िये । एक जरा छोटे नवाम साहब की सहक्लिक्ष का रंग देखिये। . इस बक्त्‌ दीवानखाने में विराजमान है बैठने का फमरा दुलद्दिन को तरद सजा हुआ है। फ़शे फरूश, शोशे ভার जो चीज है ऊाजवाघ दै ` सो इसमें छोदे नयाय सुहव के सखी और शऊरं को-कोर वखक है? बडे नवाब के बैठने का कमर .




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