मेरे कथा गुरु का कहना है | Mere Kath Guru Ka Kahana Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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No Information available about लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ मेरे कथागुर्का कहना है
परम विदवस्त समाजकी चेतनामें सन्देह एवं अविश्वासका एक नया सूत्र
प्रादुर्भूत हो गथा है । उसका निराकरण होनेपर ही इस दैवी रोषका
निवारण हौ सकता है ।' कलदेवताने संकेत दिया ओर अन्तर्धान हो गया ।
प्रधान राजपुरोहितने कुरुदेवताके अभिप्रायको तुरन्त समञ्च लिया ।
उसने उस लोई हई मेडके स्वामीको बुलवाया জীহ उसे तथा राजा एवं
राजकीय चारकोंको साथ लेकर राजकीय पशुशालामें लुप्त धनकी खोज
के लिए जा पहुँचा ।
खोई हुई भेड़ राज-पशुओंके बीच पहचान लो गई ।
“विश्वास एवं सदभावकी सुरक्षाके लिए परमावश्यक है कि सन्देहकर्ता
के सन्देहा सम्पूर्णं निराकरण तुरन्त किया जाय । सामान्य एवं असाधु ही
पर नहीं, महान् एवं साधुपर भी यह् दायित्व हँ कि वह् किसीकी दृ्िमे
संदिग्ध होनेपर सन्देहके निराकरणका मुक्त अवकाश्च प्रस्तुत करे । राजा
की भूल थी कि उसने दूसरे पशु-स्वामियोंकी शोधका अवसर तो इस व्यक्ति
को दिया, किन्तु अपनी शालाके द्वार इसकी दृष्टिके लिए पूर्णतया मुक्त
नहीं कियें। यह तबसे अपनी भेड़की कल्पना राज-पशुओंके वर्गके बीच
करता आया है और उस सुदृढ़ एवं निरन्तर कल्पना ही का यह चमत्कार
है कि राज-पशुभोके नीच इसकी मृत्युंगता भेड़की सूक्ष्म आकृति मूर्ते रूप
लेकर स्थुलवत् यहाँ दृष्टिगोचर हो रही है।'
राजपुरोहितके इन शब्दोंके साथ ही वह भेड़ अदृश्य हो गई ।
राजपुरोहितके निर्देशानुसार स्वल्प-सलिला स्रोतस्विनीके बीच एक
प्रस्तरखंडसे रुका हुआ उस भेड़का शव खोज निकाला गया ।
राजाने अपने पशु-धनमें-से सौ भेड़ें उस व्यक्तिको देकर अपने पूर्व
अन्यायका प्रतिकार किया । अगले ही दिन इंदरदेवने वहकी धरतीको जल-
वषसि प्ठावित केर दिया ।
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इस कथाके आधारपर वेदोंकी किसी ऋचाका सर्जन हुआ या नहीं
यह कोई वेद-पारंगत विद्वान् ही बता सकते हं । ।
ॐ
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