मेरे कथा गुरु का कहना है | Mere Kath Guru Ka Kahana Hai

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Mere Kath Guru Ka Kahana Hai by पंडित लक्ष्मी चंद्रजी जैन - Pt. Lakshmi Chandraji Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ मेरे कथागुर्का कहना है परम विदवस्त समाजकी चेतनामें सन्देह एवं अविश्वासका एक नया सूत्र प्रादुर्भूत हो गथा है । उसका निराकरण होनेपर ही इस दैवी रोषका निवारण हौ सकता है ।' कलदेवताने संकेत दिया ओर अन्तर्धान हो गया । प्रधान राजपुरोहितने कुरुदेवताके अभिप्रायको तुरन्त समञ्च लिया । उसने उस लोई हई मेडके स्वामीको बुलवाया জীহ उसे तथा राजा एवं राजकीय चारकोंको साथ लेकर राजकीय पशुशालामें लुप्त धनकी खोज के लिए जा पहुँचा । खोई हुई भेड़ राज-पशुओंके बीच पहचान लो गई । “विश्वास एवं सदभावकी सुरक्षाके लिए परमावश्यक है कि सन्देहकर्ता के सन्देहा सम्पूर्णं निराकरण तुरन्त किया जाय । सामान्य एवं असाधु ही पर नहीं, महान्‌ एवं साधुपर भी यह्‌ दायित्व हँ कि वह्‌ किसीकी दृ्िमे संदिग्ध होनेपर सन्देहके निराकरणका मुक्त अवकाश्च प्रस्तुत करे । राजा की भूल थी कि उसने दूसरे पशु-स्वामियोंकी शोधका अवसर तो इस व्यक्ति को दिया, किन्तु अपनी शालाके द्वार इसकी दृष्टिके लिए पूर्णतया मुक्त नहीं कियें। यह तबसे अपनी भेड़की कल्पना राज-पशुओंके वर्गके बीच करता आया है और उस सुदृढ़ एवं निरन्तर कल्पना ही का यह चमत्कार है कि राज-पशुभोके नीच इसकी मृत्युंगता भेड़की सूक्ष्म आकृति मूर्ते रूप लेकर स्थुलवत्‌ यहाँ दृष्टिगोचर हो रही है।' राजपुरोहितके इन शब्दोंके साथ ही वह भेड़ अदृश्य हो गई । राजपुरोहितके निर्देशानुसार स्वल्प-सलिला स्रोतस्विनीके बीच एक प्रस्तरखंडसे रुका हुआ उस भेड़का शव खोज निकाला गया । राजाने अपने पशु-धनमें-से सौ भेड़ें उस व्यक्तिको देकर अपने पूर्व अन्यायका प्रतिकार किया । अगले ही दिन इंदरदेवने वहकी धरतीको जल- वषसि प्ठावित केर दिया । ১৫ ১৫ ১৫ इस कथाके आधारपर वेदोंकी किसी ऋचाका सर्जन हुआ या नहीं यह कोई वेद-पारंगत विद्वान्‌ ही बता सकते हं । । ॐ




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