धर्म - विज्ञान | Dhram Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ३० तत्‌ অন धम-विक्ञान । = 9 &®&~ सज्ञलाचरण वाङ्‌ मे मनमि प्रतिष्ठिता मनो म वाचि प्रतिष्टितमाविरावीमे णि । वेदस्य म आणीस्थः श्रुत मे मा प्रहासीरननाधीतना$होराज्रान्‌ संद्धाम्टच वदिष्यामि । सत्यं वदिप्यासि। तन्‍्मासवतु | तद्कक्तारसमवतु | अबतु मामवतु वक्तारम्‌, ८” शास्तिः शान्तिः शान्तिः | “०5८४१... आधुनिक विज्ञान ओर सनातनधमे आय्येशासत्र तथा अन्य शास््रोमे 'विज्ञान' दाब्दके अनेक प्रकार, लक्षण ओर अर्थ बताये गये हँ । कोषक्रार अमरलिहने “मोक्ते घीशानमित्याइुविज्ञानं शिर्पशासत्रयो?” ऐसा कहकर वत्तं पान शिद्पश्चाख्जजलान तथा पश्चिमी सायन्सके ज्ञानको ही 'विजशान' नाम दिया है। किन्तु वैदिक दशन शानि ज्ञानके दामेद्‌ किये हैं, उनका नाम तरस्थक्ञान ओर स्परुप ज्ञान है। ज्ञिस ज्ञानमें शञाता, ज्ञान ओर शेयरूपो त्रिपुरी रहती है, उसको तरस्थ- ज्ञान कहते हैं। सत्‌, चित, आनन्द्मय देत भावापन्न आस्मामेजो ज्ञानी अवस्थिति रहती है, उसको स्वरुपजशान कटे हैं। तटस्थशानके अनेक भेद हैं, क्योंकि उल्के स्तर अनेक हैं। उन अनेक मेदोको दो प्रधान मागमे विभक्त कर सकते हैं। पक वहिजंगत्‌ सम्बन्धीय शञान ओर दुखरा अन्तर गत्‌ सम्बन्धीय शान। वहिजंगत्‌ सम्बन्धीयज्ञान प्रथम दशामें शिह्प ( 801 ) के साथ और उन्नत दूसरी दशामे पद्राथ-विद्या ( 521९1०९ ) के साथ सम्बन्ध रखता है। इसीप्रकार अन्तजगत्‌ सम्बन्धीय ज्ञान पहली दशामें दर्शन- शास्त्रीय तत्वशञानके साथ ओर उन्नत दूसरी दशाप्ें मोक्षप्रद आत्मशानके साथ सम्बन्ध रखता है | इस कारण दोनोंको उन्नत अवस्थाओंका विज्ञान कहते हैं, यही मानना पड़ेगा ।




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