जैन श्रीकृष्ण कथा | Jain Shrikrishna katha

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Jain Shrikrishna katha  by उपाध्याय श्री मधुकर मुनि - Upadhyay Shri Madhukar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) सबधी और दूसरा कृष्ण से सवधित । इसी प्रकार की रचना द्रोणाचार्य केः गिष्य युराचार्यक्रत नेमिनाथ चरित्र' भी है। इनके अतिरिक्त और भी अनेक ग्रन्थों के नाम गिनाए जा सकते हैं । देशज भाषाओं में भी इसी प्रकार ग्रन्थ रचना होती रही । आधुनिक युग की शोध प्रधान रचनाओं भे--पड़ित सुख्लालजी का श्वार तीर्थकर अगरचन्द नाहटा का श्राचीन जन भ्रन्यो मे श्रीकृष्ण , श्रीचन्द रामपुरिया का अहत अरिष्टनेमि मौर वामुदेव श्रीकृप्ण,' देवेन्द्र मुनि शास्त्री का (भगवान्‌ अरिष्टनेमि ओर कर्मयोगी श्रीकृष्ण, महावीर कोटिया का जैन कृष्ण साहित्य में क्रीकृष्णण तथा प्रो० हीरालाल रसिकदास कापडिया का अ्रीकृष्ण अने जैन साहित्य आदि उल्लेखनीय हैं । उक्त वर्णन से यह स्पप्ट होता है कि श्रीकृष्ण सवधी जैन साहित्य यदि वैदिक साहित्य की तुलना मे अधिक नही है तो कम भी नही है । जेन ओर वैदिक परपरा के कृष्ण चरित्र की तुलना माम्य होते हुए मी जेन भौर वैदिक परपरा के कृष्ण चरित्र की घटना मे कुं अन्तर है । (१) वैदिकं परपरा के अनुसार श्रीकृप्ण जरासव को स्वय नही मास्ते वरन्‌ मीम हारा मल्लयुद्ध मे उसकी मृत्यु करतिदहै। कारण यहु बताया गया है कि उसने अनेक राजाय को वलि देने के लिए वन्दी बना रखाथा। जवकि जैन परपरामे जरासध टी स्वय युद्ध करने आता है और युद्ध में इसका अत क#८्ण स्वय अपने चक्र से करते ই। (२) शिशुपाल वध ভ্তড্ঞ द्वारा युविष्ठिर के राजसूय यज्ञ में होता है जबकि जैन परपरा में वह जरासब का सहयोगी बनकर युद्ध करता है और रणक्षेत्र में ही वह घराशायी हो जाता है । (३) वैदिक परपरा कौरव-पाडव युद्ध-महाभा रत का युद्ध-स्वतत्र युद्ध मानती है जिसके नायक एक ओर दुर्योधन आदि कौरव थे और दूसरी ओर युधिष्ठिर आदि पाडव । कृष्ण इसमें पाडवों की ओर बे नीति निर्धारक रहते हैं, वे स्वय प्रत्यक्ष रूप से कोई भाग नही लेते । केवल अजुन का रथ सचालन करते हैं। यही अजुनत का मोह नाश करने के लिए गीता का उपदेश देते है




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