अणुव्रत की पृष्ट-भूमि | Anuvrat ki prust bhumi

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Anuvrat ki prust bhumi  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ থু अगुव्रत का व्यापक प्रयोग झैन-परम्परा मे श्रावक ऊे बरतो को दी अणुत्रत कदा जाता है। यह शब्द जेनागमों से छियागया दै पर इसका प्रयोग “छोटे-छोटे त्रत! इस सामान्य अर्थ में किया गया है। मौलिक व्रत पाँच हैं। उनकी साधना भी पृण नहीं है; इसीलिए वे আনু है । उनके अन्तर्गत जो छोटे-छोटे সব हैं वे अवश्य ही अणु हैं। डॉ० सम्पूर्णानन्द्जी के अनुसार वे आवश्यक भीं नहीं है । उन्होंने एक पत्र में लिखा था--“बहुत से तथोक्त ्रत ऐसे हैं, जो मेरी समझ में अनावश्यक हैं। इतना ब्यौरे में जाने से मनुष्य की बुद्धि कुण्ठित दो जाती दै ओर उसकी स्वतन्त्र विचार करते की शक्ति पर गहरा अंकुश छूग जाता है। घी में घेजीटेबल न मिलाना। वोट के लिए रुपया न लेना न देना+ होली पर भदा व्यवहार न करना, वड़ी वारात न रे जानाः बहुत से व्यक्तियों को निमन्त्रित न करना आदि ब्योरे की ऐसी পি १--श्रमणों की उपासना और ज॒तों का आचरण करनेवाला ग्रहस्थ भ्रावक कहलाता दे ।




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