माधव महाराज महान | Madhav Maharaj Mahan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माधव महाराज महन ६
गंगादीन--( घायल-दर्प से ) में अज्ञान, में बेवकूफ ही
सही, मगर यह गय मेरी नहीं प्रसिद्ध-ब्योतिषी सर्वज्ेवजी
को है।
कस्त्री--( उदास ) तो जो बात भेद की तरह, अपना
जानकर, मे किसी से कहे उसे भी सब्रश्नदेव जान गये £
गंगादीन--( सहृदय ) तुम्हारे कल्याण के लिये बहन
कस्त्री--( उसोंस ) लेकिन ज्योतिषी ने तो कह्पाण का
वादा नहीं किया ? आह ! कैसा सपना ! ( येभाचित )
सगादीन--( गभीर जिज्ञासा ) तुमने क्या महाराज के
द्ल्हे कै खूप मजा इश्रादेखा °
चस्तूरी-- ( अदुगक्त कीफ ) कितनी त्रा सुनाऊँ । न तुम
पटु वर समम पाय शौर नम वतलाकर् सममा पाड । मेने देखा-
मेन व्याह हो रहा था मगर मडपमे दृल्हा नही-ये हमे महाराजा,
दादाजी श्र मे, ओर मडप, चौवः, कलश, स्तभ, गणपति, गौयी,
दवा, नवग्रह, हल्दी, अवीर, चदन ( रोने लगती हैं )।
गगादान्--( घव्याया ) ला--तुम ते रे चली | महाकाल
मप मगल कगे वन! तने दवि से कहना द्र रामशवरभाई
आखिर को पद्ुतायेगे और दिन के भूते शाक्तो चष
সি ५
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নন तत्रे) मेक्सी चरर का नाम नहीं लेती,
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