माधव महाराज महान | Madhav Maharaj Mahan

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Madhav Maharaj Mahan by पांडेय बेचैन शर्मा 'उग्र' - Pandey Bechan Sharma 'Ugra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माधव महाराज महन ६ गंगादीन--( घायल-दर्प से ) में अज्ञान, में बेवकूफ ही सही, मगर यह गय मेरी नहीं प्रसिद्ध-ब्योतिषी सर्वज्ेवजी को है। कस्त्री--( उदास ) तो जो बात भेद की तरह, अपना जानकर, मे किसी से कहे उसे भी सब्रश्नदेव जान गये £ गंगादीन--( सहृदय ) तुम्हारे कल्याण के लिये बहन कस्त्री--( उसोंस ) लेकिन ज्योतिषी ने तो कह्पाण का वादा नहीं किया ? आह ! कैसा सपना ! ( येभाचित ) सगादीन--( गभीर जिज्ञासा ) तुमने क्या महाराज के द्ल्हे कै खूप मजा इश्रादेखा ° चस्तूरी-- ( अदुगक्त कीफ ) कितनी त्रा सुनाऊँ । न तुम पटु वर समम पाय शौर नम वतलाकर्‌ सममा पाड । मेने देखा- मेन व्याह हो रहा था मगर मडपमे दृल्हा नही-ये हमे महाराजा, दादाजी श्र मे, ओर मडप, चौवः, कलश, स्तभ, गणपति, गौयी, दवा, नवग्रह, हल्दी, अवीर, चदन ( रोने लगती हैं )। गगादान्‌--( घव्याया ) ला--तुम ते रे चली | महाकाल मप मगल कगे वन! तने दवि से कहना द्र रामशवरभाई आखिर को पद्ुतायेगे और दिन के भूते शाक्तो चष সি ५ {रान्‌ चि | कस्त কি ক च 1১ ক = নন तत्रे) मेक्सी चरर का नाम नहीं लेती,




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