परम शांति का मार्ग | Param Shanti Ka Marg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
422
श्रेणी :
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No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्मयुक्त उन्नति ही उन्नति है १५
च्यवसायके समय परस्पर सबके साथ बहुत उत्तम तथा सरल,
९ विनम्र, स्पष्ट, भ्याययुक्त गौर सत्य व्यवहार करना चाहिये । गल्ला-
किराता, सूत-कपडा, गरड-चीनी लोहा-सिमेट आदि किसी भी
वस्तुक माठ तेज या मदे हो जानेपर भी स्वीकार किये हुए सौदेके
मालको देने गौर लेनेमेन तो जरा भी आनाकानी करनी चाहिये,
न बेईमानी करनी चाहिये और न अस्वीकार ही करना चाहिये,
चाहे कितनी ही हानिका सामना करना पड़े किसी मी दलाल,
व्यापारी या एजेंटका कोई भूलसे दोष हो जाय, तो उसे क्षमा कर
देना चाहिये तथा अपने सम्पकैमे अनेवाले सभी व्यक्तयोको
अधिक-से-अधिक लाभ हो और उनकी सब प्रकारसे उन्नति हो,
ऐसा भाव रखना चाहिये। ऐसे व्यापारसे इस छोक और परलोक-
दोनो सुगमतसे उच्चति हो सकती है ।
सामाजिक उन्नति
इसी प्रकार हमें सामाजिक उन्नति भी करनी चाहिये | बच्चा
वेदा होनेपर पार्टी देवा, छोगोको बुलाकर चौपड-ताश खेलना,
बीडी-सिगरेट पिलाना, विवाह-शादीमे दहेज लेना, दहेजका
दिखलाव करना, आतिशबाजी करना, बिनोरी निकालना, बुरे
गीत गाना, थियेटर-तमाशे दिखलाना, पार्टी देना बहुत अधिक
रोशनी करना, बड़े पण्डाल बनाना, दिखावेमे व्यर्थ खचे करना
एव घरके किसी वृद्ध आदमीके मर जानेपर विधिसज्भत ब्रह्मण-
भोजन और बन्धु-बान्धवोके अतिरिक्त प्रीतिभोज करना, पार्टी
देना--आदि जो कुरीतियाँ और फिजू लखर्ची हैं, इनको हटाना
चाहिये । ये सब बातें सामाजिक उद्नतिके अन्तर्गत हैं ।
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