सहकारिता का सिद्धान्त | Sehkarita Ka Sidhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सहकारिता के सिद्धान्त £ प्रत्येक श्रार्थिकं इलचल में सहकारिता के सिद्धान्तों का उपयोग किया जा सकता है | सहकारिता के सिद्धान्त को पूर्णतया समभने के लिये यह आवश्यक है कि हम सहकारी समितियों तथा आधुनिक श्रौद्योगिक संस्याश्रों का मेद समझ लें। मान लो कि कुछ मोची श्रपनी ध्यर्थिक स्थिति का सुधारने को दृष्ठि से, श्रपनी योड़ी- थोड़ी पू जी को लेकर एक सद्भठन में सम्मिलित होते हैं और निश्चय करते हैं कि वे सम्मिलित रूप में जूते का ठयवसाय करेंगे; समिति के कार्य का संचालन करने में प्रत्येक छदत्य का समान अधिकार हो; श्रौर वाषिंक लाम सदस्यों की पूजो के अ्रनुपात में न बांठा जाकर, सदस्यों की जूतों की उत्पत्ति के अनुपात में बॉँदा जावे, तो समिति को सहकारी उत्पादक समिति कहेंगे | सइकारी उत्पादक समितियों तथा मिश्रित पू जी वाली कम्पनियों में यही भेद है कि एक तो मनुष्यों का संघ है और दूसरा पूँजी का। मिश्रित पूंजो वाली कम्पनियों में कार्य-संचालन का अ्रधिकार तथा लाभ, हिस्सेदारों को पूली के श्रनुपात में ही मिलता है । उत्पादक सहकारी समितियों के संगठन में मज़दूर पूजी को किराये पर लेकर, धम्धे की जोखिम उठाते हैं; किंतु पूंजी वालो कम्पनियों में हिम्तेदार स्वर्यं कार्य न करके मज़दूरों को नौकर रखते हैं और অন্ত की जोखिम उठाते है | उत्पादक समितियां पूंजी के लिये उचिद यूद देती र श्रौरलाभ श्रापर में बांद लेती हैं; किन्तु मिश्रित पू ली वाली कम्पनियों में निश्चित मजदूरी देकर मज़दूर रखे जाते हैं और लाम हिस्सेदारों में पू नी के अनुपात में बांट दिया जाता है | सहकारी समितियों में पू जी को श्रधिक महत्व नहीं दिया जाता । उसको सम्पत्ति उत्पन्न करने के लिये. एक साधन मात्र समझा जाता है | यही कारण है कि समिति के प्रत्येक सदस्य को केवल एक নী (मत) मिलता है, उसका समिति के कार्य-स्श्वालन में उत्तना ही अधिकार होता है, जितना कि किसी दूवरे सदस्य फा। परन्धु मिश्रित पूजी वाली कंपनियों में पूंजी का द्वी सर्वोच्च स्थान होता है, घन्धे का




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