सम्यक्त्व सूर्योदय जैन | Samyaktavya Suryoday Jain
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[0
हीं हे जिसकी अन्यथा प्रज्ञा अर्थात् विस्म॒ति
नहीं,-अल्पक्ष नहीं, (सन्ने) ानसंक्ञा या.
त् केवलङानी सर्व, (उवमाण वि) अ-
पमा न वरयते अर्यात् स संसार मे कोर
ऐसी वस्तु नहीं कि जिसकी छपमा श्वर को
दी जवे, (अस्वीसत्ता) अरूपीपन, (पय
सपयनत्यी) स्थावर जंगम अचस्था विशेष
नत्यी, (न सदे) चब्द् नदी, (न र्वे) कोट
ভন বিহীন नदीं र्यात् स्याम, श्वेत आदि
चण नही, (न गन्धे) गन्धि नदी, (न रसे) म
धु, कटु खादि रसन नदी, (न फासे) शीतो-
प्णादिक स्पर्श नहीं, (श्च) इति, (तावती) ए-
त्यावत, (निव्बमि) त्रवीमि-कद़्ता हुं.
आरियाः--यढ़ महिमा तो सुक्त पद की
कदी ट, ईश्वरकी नरी.
सनीः-परे चोते ! सुक्त दे सो इश्वर
है, और ईश्वर है सो मुक्त हे.
दरस स्यानमे सुक्त नाम श्वर का दीदे.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...