मेरा जीवन प्रवाह | Mera Jeevan Parwah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरी जन्म-भूमि ১০ दासता री याद भी नहीं आती थी । आर्थिक स्थिति लोगों की बहुत ग्रिर गई । मैने वहाँ न कहीं कोई उद्यम देखा न उद्योग | शिक्षा की दिशा में भी घोर शअन्धकार | काल चक्र से, कसम्कार और सूढ़ विश्वास जड पकड गये | पुस्पार्थ सारा लुप्त हों ग 1। आगे बढ़ने-बढ़ाने का न कोई साधन रहा, न अ्रत्र॒सर । प्रजा का रक्त-शोपण बहुत बुरी तरह किय्रा गया। राजाओं को रिश्राया के सुग्व दु ख फी रक्तीभर पर्वा नहीं थी । राज्य के कोप को ये अपनी सपत्ति मानते ये। विज्ञासिता में आकठ-मग्न । इनके नारकीय जीवन की धिनोनी कहानियाँ हैं । इनके श्रत्याचारों को सुन-सुनकर हृदय काँप उठेगा । दिनदद्टाडे वहाँ लूट होती थी। खूनतक कर दिये जाते थे। प्रजा की बहू वे टियों की त्ञा् सुरक्षित नहीं थी । मनुप्य की जान का मुल्य चाल।|स-पचास रुपये से ऊपर नहीं लगाया जाता था 1 शिकार में जब कोई हॉँके का आदमी शेर के पजों से, या गलती से बदूक चक्ष जाने स, माँ के मुँह में चला जाता, तों उसकी श्लौरत या माँ को चालीस-पचास रपये बतोर इनाम के दे दिये जाते थे । ऐसी घटनाश्रों को मेंने ख़ुद अपनी श्रॉखों से देखा था | एक राज्य का एक जुल्म तो में आ्राज भी नहीं भूला है । एक मेद्दतर का लड़का अपने रिश्तेदार की साइकिल पर राजमहल्ञ के सामने से जा रहा था | इस वेश्दत्री पर उसकी साईकिल ज़ब्त करली गई, ऊपर से उस उदण्ड लड़के पर जूते भी पडे ! महल के सामने से कोई छाता खोलकर नहों जा सकता था ! नगे सिर निकलना भी किसी किसी राज्य में जुम॑ माना जाता था ! यद्द वांत तो कढ्पना से परे थी कि राजा या




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