प्रेम सुधा भाग २ | Prem Sudha Vol-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रचार और विहार | [ ५
करने में आई जो भारतवर्ष की अतीत शिल्पकल्ला की सहज ्ी
स्मृति करा देती थीं। यहा का “प्रतिध्वनि नामक महल एक बडा
विचित्र महल हे जिसमें काफी दूर से आवाज देने वाले की ध्वनि
ज्यों की त्यों प्रतिध्यनित होती है अर ज्यों की त्यों श्रवण करने में
आती है |
लोगों से यह् भी विदित हुआ है. कि यहा पर किसी समय
जैनों की एक लाख जनसख्या थी, जो आज्ञ कुल ४-६ घर टी शेप
हैं। यहां से सतपुड़ा पहाड़ का महाबिषम घाटा उतर लम्बा २
विहार कर “सेघवा” पहुँचे । रास्ते में कोई अपना क्षेत्र नहीं आता
है।' आहार-पानी का बहुत परिपह्द सहन करना पडता है। यहाँ
पर गुजराती ओर मारवाडी भाईयों के अनुमानतः १४-२० घर हैं।
महाराज श्री के यहॉपर धमंशाला में २-३ सावेजनिकं व्याख्यान
हुए, फिर यहाँ से विहार कर सिरपुर पघारे | यहाँ पर सी आपके
२-३ सावेजनिक व्याख्यान सिनेमा हाल में हुए |
यर से महाराज श्री ने धूलिया की श्रोर विहार क्रिया । मुनि
श्री के घूलिया पहुँचने की सूचना पाकर कितने ही साधु साध्वीजी
आपके पहुँचने से पहले ही धूलिये में एकत्रित हो गये। स्थानापन्न
वथोबृद्ध श्री माशकऋषिज्ी महाराज और मंत्री श्री किशनलालजी
सहाराज तथा हरिऋषिजी महाराज आदि मुनिसमुदाय तथा
कितनी ही साध्विये विराजमान थीं और नवठाणें से आप भी
पधार गये । बहुत ही परस्पर में धर्म प्रेम रहा। ऐसा प्रतीत होता
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