भारत में 1970 के बाद की विज्ञान पत्रकारिता में एक निजी यात्रा | INDIAN POPULAR SCIENCE A PERSONAL JOURNEY

INDIAN POPULAR SCIENCE A PERSONAL JOURNEY by पुस्तक समूह - Pustak Samuhरेक्स डी रोज़ारियो - REX D ROZARIO

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रेक्स डी रोज़ारियो - REX D ROZARIO

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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को फैलाने के लिए इसके द्वारा किया गया रंगमंच और नृत्य नाटिकाओं का उपयोग - यह ऐसा प्रयास था जिसे यह संगठन विस्मित कर देने वाले कला रूप की ऊँचाइयों तक ले गया, और उसने प्रदर्शन कलाओं के क्षेत्र में देश भर के सृजनशील लोगों को प्रभावित किया। केएसएसपी के भ्रमण करने वाले जत्थों की अवधारणा ने ही उसे विंध्याचल श्रृंखला को पार करके उत्तर भारत में आने और यहाँ के सक्रिय कार्यकर्ताओं की कल्पना को प्रज्वलित करने में समर्थ बनाया | केएसएसपी से प्रेरित होकर पंजाब से लेकर उडीसा तक के लोगों ने अपने खुद के विज्ञान जत्थों और परिषदों को नया रूप दिया। उत्तर भारत और दक्षिण भारत के ये जन विज्ञान आन्दोलन महाराष्ट्र और दिल्‍ली के पुराने उपक्रमों - मराठी विज्ञान परिषद (जिसका इतिहास 1960 के दशक तक पीछे जाता है) तथा वामपन्थी रुझान वाला दिल्‍ली साइंस फोरम (जिसका गठन 1970 के दशक के अन्त में हुआ था) - से जुड़ गए और इस तरह वैज्ञानिक सोच का प्रसार करने, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने तथा साक्षरता और शिक्षा के लिए अखिल भारतीय संजालों का निर्माण हुआ, जैसे कि ऑल-इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क (एआईपीएसएन), भारतीय ज्ञान विज्ञान समिति (बीजीवीएस), तथा एनसीएसटीसी से सहायता प्राप्त दम 02 भले 1 इदार 2 ४४ 2५1 58822 8 सर पद: पक 07028 दे 2108 7 तय 70770: 8 707: ्ट संत पद प4 कबाड़ 1 10 १०८०६, 4४ *ऐ ) 5 हे ४ 89! ते पं ० पा: 2 7 2 रद 2 व पे 925 7; 3 02 1:16 220929:23 7० 22275 1122 225 40:40 017 कक २ (5 न हर 1१:07 ४8 ० म क कद 1! 0 8 10 1120 3 75 0211] 1 ०5 पक मल 1 (०7४३३ । भारतीय जन विज्ञान जत्था (बीजेवीजे)। जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (नेशनल ऐलाएंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट - एनएपीएम) में नर्मदा बचाओ आन्दोलन (एनबीए) जैसे जन आन्दोलनों की भागीदारी ने विज्ञान तथा समाज के सम्बन्ध, और आज़ादी के बाद देश के द्वारा अपनाए गए विकास के प्रतिरूप पर उसके प्रभाव के बारे में बहस को नई धार दी। हालाँकि ये विभिन्‍न विज्ञान मंच हमेशा एक-दूसरे के साथ तालमेल नहीं बनाए रखते, फिर भी वे एक समर्थ और तार्किक सन्तुलन शक्ति की तरह ऐसे परिदृश्य में अपना अस्तित्व बनाए रख रहे हैं, जिसमें निर्बाध उपभोक्‍तावाद और वैश्वीकरण की प्रवृत्तियाँ विज्ञान और प्रौद्योगिकी का कुरूप चेहरा उन प्रक्रियाओं के द्वारा प्रकट कर रही हैं जिनके परिणाम _ जीवन के बढ़ते हुए रसायनीकरण, पृथ्वी के गर्म होते जाने (ग्लोबल- वॉर्मिंग) और राष्ट्र राज्यों के टकरावों और वैश्विक आयुध उद्योग को बनाए रखने और बढ़ाने वाले बाज़ारों के रूप में देखे जा सकते हैं। केएसएसपी यूरेका नाम की एक बच्चों की पत्रिका (मलयालम में) प्रकाशित करती है जो पूरे केरल के उच्चतर प्राथमिक स्कूलों में व्यापक रूप से वितरित की जाती है। कोझीकोड स्थित प्रोफेसरों के द्वारा सम्पादित इस पत्रिका का उददेश्य वैज्ञानिक अवधारणाओं और विज्ञान में हो रहे ग्रैक्षणिक संदर्भ अंक-43 (मल अंक 100) 1; क्षिदवांप; 3114-11 शत गित हिल तह त ; लत 111 6008 1, 2116 80% ; है. ० ४ 02 4 ट या 2 $ ' क् (जे मनन हित. दे कर ख का न 1 ; ० 10५ १577, .. 20% 2६. 771 1 ब्ध हित न 200 :5,:0.. . 21: 5 हा, न. : 2 पण य 2 7228. ही ५::205 20:23 हो रही है। विज्ञान प्रगति: पिछले 63 साल प्रकाशित की जाती है। इन दोनों पत्रिका पर भी लेख होते हैं। विज्ञान प्रगति होता है। विकासों पर आसानी से समझ में आने वाले लेखों को प्रकाशित करके स्कूली बच्चों में विज्ञान को लोकप्रिय बनाना है। इसमें स्वयं करके देखने वाले विज्ञान के प्रयोग, तथा बच्चों के लिए अन्य गतिविधियाँ भी रहती हैं। इसके अलावा, यह संगठन हाई स्कूल के बच्चों के लिए एक शास्त्र केरलम्‌ नामक पत्रिका, और सामान्य पाठकों के लिए की शास्त्रगाथी नाम की एक अन्य पत्रिका भी प्रकाशित करता है। इसके अतिरिक्त यह लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकों का ह वा 7: ८21 5० न ः 5 जन 1:04 न 371: 206 6 70 2110 कक पक 87 22070 79777 78 17721 कया 2 77270 866 17277: 5 77707: 18 7 770 लक 6 1: 27 277 हक 1 कि कक आम 8 हक कम कल हे कप की + तय कक कल विस ६. 15:05 1 007 न 7777: 314: 478: पर 12 है. 193, 1: लय य 1, ६ न पाई ै- आग कह 15918 न 1 कु शैक्षणिक संदर्भ अंक-4 छा ; परिषद द्वारा प्रकाशित पत्रिका विज्ञान लगभग े हल ३० 1400: “आस से वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा ओं में विज्ञान-तकनीक सम्बन्धित तात्कालिक मुद्दों का अँग्रेज़ी संस्करण साइंस रिपोर्टर के नाम से प्रकाशित :5:..- ७ बोंदे चेठ औषधीय [एवं पोषक्रीय उपंश्रीण 2 1 ह् और हमारा स्वास्थ्य १ 1 - एक. 1 पे 21118 प्रकाशन (700 से भी अधिक प्रकाशित) भी करता है। पु इन प्रकाशनों ने अप क्षेत्रीय भाषाओं की विज्ञान पत्रिकाओं के लिए आदर्श प्रतिमानों का काम किया है, और उनसे प्रेरित होकर किए गए कुछ ऐसे ही प्रयास हैं: बच्चों के लिए केआरवीपी की बालजीवन (कन्नड़ में) और टीएनएसएफ की थुलीर (तमिल में), तथा बड़े बच्चों के लिए जंतर- मंतर (अंग्रेज़ी में)। हि पा विज्ञान की पैरवी के क्षेत्र में 5. शग




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