झींगुर गा ना पाए | Jhingur Gaa Naa Paye

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फरीदा खल्अतबरी - Farida Khalatbari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झींगुर पत्तों के नीचे से बाहर आया। उसने अपना बाजा ढूँढ निकाला | दहाड़ने की आवाज़ अभी भी आ रही थी। अनजाने में उसकी उँगलियाँ बाजे के तारों से छू गईं और मीठे-मीठे सुर निकले | “कितने मीठे सुर हैं! क्यों न गाना हो जाए। झींगुर ने उधर देखा जिधर से आवाज़ आई थी। एक सुन्दर-सी झींगुरी पास खड़ी उसे देख रही थी |




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