भारत में बौध्द धर्म का क्षय | BHARAT MEIN BAUDH DHARM KA KSHAY
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
594 KB
कुल पष्ठ :
20
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
दामोदर धर्मानंद कोसांबी - Damodar Dharmananda Kosambi
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कम लड़ी जाएं, ताकि जन-धन की क्षति न हो हर्षवर्धन
का इनसे कोई वास्ता नहीं था।
दूसरे शब्दों में, बौद्धवाद बहुत खर्चीला साबित हुआ।
असंख्य मठ और उनमें रहने वाले ऐय्याशों पर, और
सैनिकों पर, दोहरी लागत आने लगी। अपने प्रारंभ काल से
ही बोद्धवाद एक सार्वभौमिक राजतंत्र के विकास का
हिमायती था जो छोटे-मोटे युद्धों को रोकता था। स्वयं बुद्ध
चक्रवर्ती थे, वे राजा के अध्यात्मिक प्रतिरूप थे। किंतु
ऐसी महान विभूतियों ने जिन साम्राज्यों को चलाया वे
बहुत महंगी व्यवस्थाएं साबित हुई। भारत में हर्ष इस
प्रकार के अंतिम सम्राट थे। इसके बाद छोटे-छोटे टुकड़ों
में राज्यों का विभाजन हो गया। यह प्रक्रिया नीचे से उपजी
सामंतवादी व्यवस्था के उदय तक चलती रही। धीरे-धीरे
प्रशासन साम॑ती तंत्र के हाथों में चला गया। इस व्यवस्था
का जन्म, भूमि पर संपत्ति के नए उपजे अधिकारों को
लेकर हुआ।
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