मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ | MUNSHI PREMCHAND KI KAHANIYAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
1170
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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प्रेमचंद - Premchand
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सारी उम्र छल-कपट में कट गयी। मैंने न जाने कितने आदमियों को दगा
दी, कितने खरे को खोटा किया; पर अब भगवान ने मुझ पर दया की है, वह
मेरे मुँह की कालिख को मिटाना चाहते हैं। मैं आप सब भाइयों से लल्रकार
कर कहता हूँ कि जिसका मेरे जिम्मे जो कुछ निकलता हो, जिसकी जमा
मैंने मार ली हो, जिसके चोखे मात्र का खोटा कर दिया हो, वह आकर
अपनी एक-एक कौड़ी चुका ले, अगर कोई यहाँ न आ सका हो, तो आप लोग
उससे जाकर कह दीजिए, कल से एक महीने तक, जब जी चाहे, आये और
अपना हिसाब चुकता कर ले। गवाही-साखी का काम नहीं।
सब लोग सन्नाटे में आ गये। कोई मार्मिक भाव से सिर हिला कर
बोला--हम कहते न थे। किसी ने अविश्वास से कहा--क्या खा कर भरेगा,
हजारों को टोटल हो जायगा।
एक ठाकुर ने ठठोली की--और जो लोग सुरधाम चले गये।
महादेव ने उत्तर दिया--उसके घर वाले तो होंगे।
किन्तु इस समय लोगों को वसूली की इतनी इच्छा न थी, जितनी यह
जानने की कि इसे इतना धन मिल कहाँ से गया। किसी को महादेव के पास
आने का साहस न हुआ। देहात के आदमी थे, गड़े मुर्दे उखाड़ना क्या जानें।
फिर प्राय: लोगों को याद भी न था कि उन्हें महादेव से क्या पाना हैं, और
ऐसे पवित्र अवसर पर भूल-चूक हो जाने का भय उनका मुँह बन्द किये हुए
था। सबसे बड़ी बात यह थी कि महादेव की साधुता ने उन्हीं वशीभूत कर
लिया था।
अचानक पुरोहित जी बोले--तुम्हें याद हैं, मैंने एक कंठा बनाने के
लिए सोना दिया था, तुमने कई माशे तौल में उड़ा दिये थे।
महादेव--हॉँ, याद हैं, आपका कितना नुकसान हुआ होग।
पुरोहित--पचास रुपये से कम न होगा।
महादेव ने कमर से दो मोहरें निकालीं और पुरोहित जी के सामने रख
दीं।
पुरोहितजी की लोलुपता पर टीकाएँ होने त्रगीं। यह बेईमानी हैं, बहुत
हो, तो दो-चार रुपये का नुकसान हुआ होगा। बेचारे से पचास रुपये ऐंठ
लिए। नारायण का भी डर नहीं। बनने को पंड़ित, पर नियत ऐसी खराब
राम-राम !
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