पुरानी रस्सी | PURANI RASSI

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अनवर सुहैल -ANWAR SUHAIL

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/117॥2016 फिर चूल्हे की रोशनी में अपना दाहिना हाथ उसने आगे बढ़ाया। उसकी कलाई में गोदने से फूल-पत्तियों के बीच लिखा था - 'श्यामा'| साँवली सूरत, तीखे नैन, पतले-पतले पल्टे हुए होंठ, घुँघराले-काले बाल और साँचे में ढली श्रमदेवी यामा। यामा ने पूछा तो सुलेमान ने बताया कि आपी की तरफ से वह निश्चित रहे। वे टीवी देख रही हैं। रोटी बनाकर यामा ने फुर्सत पाई। चूल्हे से बची लकड़ी निकालकर बुझाने लगी। सुलेमान ने यामा से इजाजत ली और अपने कमरे में वापस लौट आया। उसका मन अब कहाँ लगता! वह बिस्तर पर अनमना-सा लेट गया। आपी टीवी पर सास-बहू वाले सीरियल का आनंद ले रही थीं। नौशे-भाई बीडीओ हैं। अक्सर दौरे पर रहते हैं। उस दिन भी वह घर पर न थे। नुसरत आपी के दोनों बच्चे यानी सुलेमान के भांजे रायपुर के एक बोर्डिंग स्कूल में थे। नुसरत आपी नौकर-चाकरों के साथ सरकारी आवास में अक्सर अकेले दिन बिताया करतीं। रात जब आपी के खर्राटे गूँजने लगे, तब सुलेमान उठा। दीवाल-घड़ी पर उस समय बारह बज रहे थे। सुलेमान चुपके से मुख्य-द्वार खोलकर सीधे पीछे गैरेज की तरफ पहुँचा। गैरेज से लगे कमरे के अंदर से जलती ढिबरी की पीली मटमैली रोशनी दरवाजे की झिर्रियों से बाहर झाँक रही थी। निडर सुलेमान ने दरवाजे पर दस्तक दी। अंदर आहट हुई और दरवाजे के पास यामा की आवाज आई - 'कौन?' सुलेमान ने फुसफुसाया - 'मैं।' दरवाजा खुला, यामा ब्लाउज और लहँगे पर थी। उसने जल्दी से सुलेमान को कमरे के अंदर कर लिया। 'हे भगवान, किसी ने देखा तो नहीं?' 'मुझे कुछ नहीं मालूम, समझ लो मेरी मति मारी गई है।' कमरे में जमीन एक तरफ गुदड़ी बिछी हुई थी। एक तरफ गिरस्ती का दीगर सामान और पानी का मटका रखा था। यामा ने गुदड़ी पर उसे बिठाया। सुलेमान ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया। यामा झिझकते हुए पास आ बैठी। सुलेमान ने डरते-डरते उसका हाथ पकड़ा। बाप रे बाप, उस मेहनती हाथ की उँगलियाँ कितनी सख्त थीं। हथेलियों पर गाँठें थीं। बेहद सख्त खुरदुरा हाथ। जैसे कि किसी पेड़ की छात्र हो। यामा ने उस रात कुदरत के कई गोपन-रहस्यों पर से पर्दा उठाया था। वो एक ऐसी रात थी जिसमें सुलेमान अपनी सुध-बुध खो चुका था। वो एक ऐसी रात थी जिसकी 'सुब्ह कभी न हो' ऐसा वे चाहते थे। वो एक ऐसी रात थी जिसे फिर सारी उम्र दोहराया न जा सका। वो एक ऐसी रात थी जब दो प्यासी रूह एकाकार हुई थीं। बस, उस रात की याद उनकी जिंदगी का सरमाया थी। यामा के पूर्ण समर्पण की कीमत उसने अदा करनी चाही, किंतु गरीब यामा नाराज हो गई। उसने तर्क दिया कि ये रिश्ता अकेले का तो नहीं। दोनों ने इन अनमोल लम्हात को साथ-साथ जिया है, फिर कोई एक इसका श्रेय क्यों ले? यामा लालची नहीं थी, 4/13




User Reviews

  • A S Ansari

    at 2023-04-15 08:09:01
    Rated : 10 out of 10 stars.
    excellant
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