राहु-केतु की खोज | RAHU-KETU KI KHOJ

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राकेश पोपली - RAKSEH POPLI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राहु-केतु की खोज 49 “सिर का नाम राहु, धड़ का नाम केतु ! तभी से राहु-केतु को चंद्रमा से बैर पड़ गया है। और भगवान से भी | सूरज तो बिसनू भगवान का ही रूप है। इसलिए जब कभी आसमान में राहु या केतु चंद्रमा को पूरा खिला देखता है तो “चुगलखोर” कह कर उसे ग्रस लेता है। यही बात सूरज की है। कभी सूरज को घिरन (ग्रहण) लगता है तो कभी चंद्रमा को। समझे न ? अच्छा, कहानी पूरी हुईं। अब सो जाओ। क्या कहते हो तुम लोग अंग्रेजों की तरह - घुट नाई ?” “गुड नाइट”, दोनों ने खिलखिला कर कहा। अच्छा, दादीजी, ये राहु और केतु क्या फिर मिल कर एक हो जायेंगे ?”, शीला से पूछे बिना रहा न गया। दादी ने कहा, “ भला मैं क्या जानूँ ? मंदिर में संत जी कथा करते हैं न, वे ही सुना रहे थे, सो मैंने बता दिया। अब तुम पूछोगे : यह कैसे, वह कैसे ?




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