राहु-केतु की खोज | RAHU-KETU KI KHOJ
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
31
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
राकेश पोपली - RAKSEH POPLI
No Information available about राकेश पोपली - RAKSEH POPLI
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राहु-केतु की खोज 49
“सिर का नाम राहु, धड़ का नाम केतु !
तभी से राहु-केतु को चंद्रमा से बैर पड़ गया है। और भगवान से भी | सूरज
तो बिसनू भगवान का ही रूप है। इसलिए जब कभी आसमान में राहु या केतु
चंद्रमा को पूरा खिला देखता है तो “चुगलखोर” कह कर उसे ग्रस लेता है। यही
बात सूरज की है। कभी सूरज को घिरन (ग्रहण) लगता है तो कभी चंद्रमा को।
समझे न ? अच्छा, कहानी पूरी हुईं। अब सो जाओ। क्या कहते हो तुम लोग
अंग्रेजों की तरह - घुट नाई ?”
“गुड नाइट”, दोनों ने खिलखिला कर कहा।
अच्छा, दादीजी, ये राहु और केतु क्या फिर मिल कर एक हो जायेंगे ?”,
शीला से पूछे बिना रहा न गया।
दादी ने कहा, “ भला मैं क्या जानूँ ? मंदिर में संत जी कथा करते हैं न,
वे ही सुना रहे थे, सो मैंने बता दिया। अब तुम पूछोगे : यह कैसे, वह कैसे ?
User Reviews
No Reviews | Add Yours...