ज्ञानी चूहा | GYANI CHUHA

GYANI CHUHA by मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तो यह समझते हो कि जो जितना मार सकता है, वह उतना बड़ा है। पर नहीं, आदमी की बड़ाई इस बात में है कि वह पैदा भी कर सकता है। तुम लोग क्या पैदा कर सकते हो? सिंह बोला--मैंने एक दिन में 20 हिरन मारे थे। घड़ियाल बोला--मैंने एक झपटूटे में एक हजार मछलियों और कछुओं को मारा था। महालंगूर बोला--बस तुम्हें यही करना आता है, पर मैं तो पूछता हूं कि तुम पैदा क्या कर सकते हो। मनुष्य केवल नाश ही नहीं कर सकता, बल्कि वह चीजें भी पैदा कर सकता है। वह खेती करके अनाज पैदा करता है, वह अपने कारखानों में जाने कितनी ही तरह का माल पैदा करता है। वह जो चीज चाहे पैदा कर सकता है। उसकी असली बड़ाई इसी बात में है। उसने अभी हाइड्रोजन बम बनाया है, पर यह तो कुछ भी नहीं । खेती-बाड़ी, छापाखाना, पुस्तकालय और इस तरह के कामों से ही उसने अपनी बड़ाई साबित की है। उसकी यह मेहरबानी है कि उसने सिंह और घड़ियाल को अभी तक जिन्दा छोड़ा है। यह कहना था कि घड़ियाल और सिंह दोनों बड़े जोर से तड़पे और रस्सी तोड़ कर महालंगूर की ओर झपटे। पर महालंगूर पहले से सारी परिस्थिति भांप चुका धा। जब तक ये रस्सी तोड़ें, वह तब तक पेड़ों पर छलांग लगाता हुआ मील भर दूर जा चुका था । जब दोनों ने यह देखा कि महालंगूर भाग गया, तब वे गुस्से के मारे एक-दूसरे पर टूट पड़े और लड़-भिड़ कर दोनों वहीं ढेर हो गए। महालंगूर यह खबर पाकर लौट आया और उसने तमाशा देखने के लिए आए प्राणियों से कहा--अफसोस है कि ये बेचारे सत्य को सह नहीं सके। थोड़ी देर में एक शिकारी आया। सिंह और घड़ियाल का चमड़ा मुफ्त में पाकर बहुत खुश हुआ। महालंगूर बैठे-बैठे सब कुछ देख रहा था। बोला--सृष्टि का राजा तो अब आया।




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