सफ़दर हाशमी - व्यक्तित्व और कृतित्व | SAFDAR HASHMI- VYAKTITVA OR KRITITVA

SAFDAR HASHMI- VYAKTITVA  OR  KRITITVA by पुस्तक समूह - Pustak Samuhसफ़दर हाशमी- SAFDAR HASHMI

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

सफ़दर हाशमी- SAFDAR HASHMI

No Information available about सफ़दर हाशमी- SAFDAR HASHMI

Add Infomation AboutSAFDAR HASHMI

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
न॒कक्‍्कड़ नाटक का महत्त्व और कार्यप्रणाली जन नाट्य मंच (जनम ) जब भी किसी राज्य या अखिल भारतीय स्तर की कांफ्रेंस में अपने न॒क्कड़ नाटकों का मंचन करने जाता है, तो उसे दूसरी दर्जनों जगहों पर आने का निमंत्रण मिलता है । जन नाट्य मंच के लिए इन सभी निमंत्रणों को स्वीकार करना संभव नहीं होता । इसका एक कारण तो व्यावहारिक है । जनम ' के साथियों के लिए बार-बार एटट्टियाँ लेकर दिल्‍ली से बाहर जाना संभव नहीं होता । फिर, पूरी टीम को लेकर आने-जाने में होनेवाले खर्च का प्रश्न भी है । परंतु निमंत्रण स्वीकार नहीं _ करने का एक बड़ा कारण और है । और यह बुनियादी और गंभीर कारण है। 'जनम' की यह समझ है कि एक सशक्त जन नाट्य आंदोलन को देशव्यापी स्तर पर खड़ा करना आज निहायत जरूरी हो गया है । अपनी जीवंतता, सहज संप्रेषणीयता और व्यापक प्रभावशीलता की वजह से नाटक ही ऐसी विधा है जो जनता के व्यापक हिस्से के बीच जनवादी चेतना और स्वस्थ वैकल्पिक संस्कृति को फैलाने में कारगर भूमिका निभा सकती है । जनपक्षीस कला के परंपरागत रूपों के लगातार सूखते और लप्त होते जाने के इस दौर में शहरों , कस्बों और गाँवों के सांस्कृतिक जीवन में एक गंभीर रिक्‍्तता की स्थिति पैदा हो गई है । टी. वी., सिनेमा और रेडियो द्वारा प्रसारित पतनशील और सड़ी-गली संस्कृति द्वारा इसे भरने की कोशिश की जा रही है | पैँजीवादी तंत्र और राज्य-सक्ता द्वारा फैलाया जा रहा यह जाल आम जनता को अपनी जहरीली गिश्फ्त में जकड़ रहा है । लेकिन यह नहीं भलना चाहिए कि शोषकवर्गीय संस्कृति जनता की गहरी सांस्कृतिक भूख का हरगिज नहीं मिटा सकती । संस्कृति के क्षेत्र में उत्पनन इस शून्य को सिर्फ जनवादी संस्कृति के द्वारा ही भरा जा सकता है और इस महान दायित्व को पूरा करने की क्षमता देश के मूल रूप में यह लेख सफदर हाशमी ने 'जनवादी नौजवान सभा ' की पत्रिका 'नौजवान' के लिए लिखा था और उसी में प्रकाशित हुआ था । सफ़दर /.33




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now