अपना झारखण्ड | APNA JHARKHAND
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
20
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
सीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY
No Information available about सीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झारखण्ड में वनों का विनाश
पूंजीवादी समाज की मुनाफाखोरी प्रवृत्ति
के चलते वनों का भारी पैमाने पर विनाश हो रहा है
और यह मानव समाज को विनाश की दिशा में ले
जा रहा है। इस गंभीर मसले को समझने की एक
कोशिश यहां की गयी है।.
भारत के वनों को उनकी प्रकृति के आधार
पर पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है। सदाबहार
वन, मानसूनी वन, मरूस्थलीय वन, पर्वतीय वन एवं
डेल्टा वन | हमारे झारखण्ड में खासकर मानसूनी या
पर्णपाती वन पाये जाते है। मानसूनी वनों के वृक्षों के
पत्ते ग्रीष्मकाल में सूखकर डड जाते हैं। और वर्षा
ऋतु के आगमन के साथ ही वृक्ष हरे-भरे हो जाते
हैं। वन व्यापक प्राकृतिक संसाधन हैं। वन से मनुष्य
को अनेक प्रकार की आवश्यक वस्तुएँ, सुख-
सुविधाएँ और ऑक्सीजन मिलते हैं| वन कार्बन-डाइ-
ऑक्साइड का अवशोषण करके पर्यावरण में प्रदूषण
को कम करता है। क्
द वनों में निवास करने वाले लोगों के जीवन
के लिए वनों का बहुत अधिक महत्व है। जंगलों से
गोंद, छप्पर बनाने के सामान, फल, जड़ी-बूटियां,
औषधियां, लकडियाँ, तेल, चारा, व्यापारिक महत्व के
फूल, कंदमूल, मसाला आदि प्राप्त होते हैं।
वन विनाश के कई कारण हैं। ऐसे तो
कीटों के आक्रमण से भी वृक्ष नष्ट होते हैं। कीट-पतंग
पेडों में छेद बना डालते हैं, जिसके कारण उनमें घुन
लगता है। पशु-पक्षी उगते हुए पौधों, अंकुर, प्रौढ़
वृक्षों की छाल, पत्तियाँ, जडों और तनों को खाकर
नष्ट करते हैं| तेज गति से आनेवाली आंधियों और
तूफानों क॑ कारण पैड़ जड़ सहित उखड़कर गिर
जांते हैं। वनों में आग लगने से भी वृक्ष नष्ट हो जाते
हैं। लेकिन वनों के विनाश में मनुष्य की भूमिका
सबसे प्रमुख है। मनुष्य ने वनों को वाणिज्य-व्यापारिक
हितों, उत्खनन कार्य, ईंधन की प्राप्ति, निर्माण कार्य
आदि के लिए भारी पैमाने पर वनों को बरबाद किया
है। सड़कें बनाने, रेल की पटरियाँ बिछाने, तथा
उद्योग, नदी-घाटी परियोजना एवं बाँधों के निर्माण
के लिए विशाल वन क्षेत्रों को साफ कर दिया गया
है। विगत तीस वर्षों में सड़क निर्माण के लिए 73
हजार हेक्टेयर, उद्योगों के लिए 14.6 लाख हेक्टेयर
तथा अन्य कार्यों के लिए 99 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्रों
को साफ किया गया है। खनिज उत्खनन तथा बडे
बांध निर्माण के लिए विशाल वन क्षेत्र साफ कर दिये
गये हैं। खनन कार्य से बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते हैं |
एस जमीन का पुनः उपयोग सम्भव नहीं होता है।
सृष्टि के उदय-काल से लेकर आज तक
मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति और स्वार्थ
लाभ के लिए प्रकृति का असीमित दोहन किया है।
भारत में ब्रिटिश काल से ही बडे पैमाने पर वनों को
उजाड़ना प्रारंभ हुआ था। आज हालात यहाँ तक पहुँच
गये हैं कि वनों के समक्ष अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न उठ
खड़ा हुआ है। अतः वनों की दीर्घकालिक रक्षा और
विकास के लिए जल्द-से जल्द ध्यान दिया जाना
जरूरी है। इसके लिए अति आवश्यक है कि वनों. में
अंधाधुंध और अविवेकपूर्ण खनन एवं कटाई बंद की
जानी चाहिए। वन पर निर्भर समुदायों को वनों पर अधि
कार और वनों की रक्षा का भार सौंपना चाहिए। वनों
की कटाई की भरपाई के लिए पुनः वन रोपण में तेजी
लानी चाहिए। वनों को बचाने के लिए यथा शीघ्र जन
अभियान के माध्यम से चेतना जगाना होगा। हमें सचेत
होना होगा। तभी जाकर हम वनों की रक्षा कर सकते
हैं। गॉव के लोगों को जागरूक होना होगा। ग्रामीणों
. की आवश्यकता के अनुसार ही वनों के वृक्षों को काटा
जाना चाहिए | वनों की रक्षा के लिए गाँव के नौजवानों
को आगे आना होगा।
| -+कुमार दिलीप
User Reviews
No Reviews | Add Yours...