लाखी | LAKHI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
एंटन चेखव - Anton Chekhov
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इवान इवानिच ने गर्दन तानी, चारों ओर सिर झुकाने लगा और पंजा पीछे
उठा लिया।
“शाबाश' '* अब ढेर हो जाओ!”
हंस पीठ के बल लेट गया और पंजे ऊपर उठा लिए। कुछ और ऐसे ही
मामूली-से तमाशों के बाद अजनबी ने सहसा अपना सिर पकड़ लिया, चेहरे
पर डर का भाव ले आया और चिल्लाया :
“आग ! आग | बचाओ !”
इवान इवानिच दौड़ा-दौड़ा दर के पास गया, डोरी चोंच में पकड़ी और
घंटी बजाने लगा।
अजनबी बहुत खुश हुआ। उसने हंस की गर्दन सहलाई और बोला :
“शाबाश, इवान इवानिच ! अच्छा, तुम यह कल्पना करो कि तुम जौहरी
हो और हीरे-जवाहरात बेचते हो। अब यह कल्पना करो कि तुम दुकान पर
आए और देखा- वहां चोर घुस आए हैं। ऐसी हालत में तुम क्या करोगे?”
हंस ने दूसरी डोरी चोंच में पकड़ी और खींच दी। तभी जोरदार धमाका
हुआ। लाखी को घंटी की आवाज बड़ी अच्छी लगी थी और धमाके से तो वह
बावली हो उठी, दर के चारों ओर दौड़ने और भौंकने लगी।
“मौसी, चलो अपनी जगह!” अजनबी चिल्लाया, “चुप रहो!”
इवान इवानिच का काम इस धमाके के साथ ही खत्म नहीं हुआ। इसके
बाद घंटे भर तक अजनबी उसे अपने इर्द-गिर्द बागडोर पर दौड़ाता रहा और
कोड़ा सटकारता रहा। हंस को दौड़ते हुए बाधाओं के ऊपर से और छल्ले में
से कूदना पड़ता था, सीखपा होना पड़ता था, यानी दुम पर बैठकर पंजे हवा
में हिलाने पड़ते थे। लाखी टकटकी लगाए इवान इवानिच को देख रही थी। वह
खुशी से भौंकने लगती और उसके पीछे दौड़ने लगती। आखिर हंस को भी
और खुद को भी थकाकर अजनबी ने माथे से पसीना पोंछा और आवाज
दी:
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