कजरी गाय फिसलपट्टी पर | KAJARI GAI FISALPATTI PAR

KAJARI GAI FISALPATTI PAR by अरुंधती देवस्थले - ARUNDHATI DEVSTHALEजुज़ा वाइजलैंडर - JUJJA WEISLANDERपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कजरी गाय थोड़ा-सा पीछे, नीचे को खिसकी | _ अब वह अपनी पिछली टाँगें सामने फैलाकर . और पूँछ सीधी पीछे खींचकर बैठी थी। उसने अपनी आँखें बंद नहीं की थीं। मूँ...! एक, दो, तीन...” उसने अपने सींग हिलाते कहा, “जो भी हो, लो मैं आई!




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