हमने कीटाणुओं के बारे में कैसे जाना ? | HOW DID WE KNOW ABOUT GERMS?

HOW DID WE KNOW ABOUT GERMS? by अरविन्द गुप्ता - ARVIND GUPTAआइज़क एसिमोव -ISAAC ASIMOVपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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आइज़क एसिमोव -Isaac Asimov

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 रोग बीमारियों से हरेक का वास्ता पड़ता है। किसी को नहीं पता कि वो कब और कहां बीमार पड़ जाए। लोगों की तबियत कभी भी खराब हो सकती है - उन्हें बुखार आ सकता है या फिर खुजली या खसरा हो सकता है। कभी-कभी बीमारी में लोग दम भी तोड़ देते हें। जब एक व्यक्ति बीमार पड़ता है तो उसके साथ-साथ अन्य लोगों को भी वो रोग लग सकता है। कुछ बीमारियां तेजी से फैल कर एक शहर, या पूरे क्षेत्र की जनता को प्रभावित कर सकती हैं। कुछ बीमारियों तो जानलेवा हो सकती हैं और तबाही मचा सकती हैं। उदाहरण के लिए 1300 में काला-ज्वर (ब्लैक डेथ) नाम के रोग से यूरोप, एशिया और अफ्रीका में लाखों लोगों की मृत्यु हुई। मानवीय इतिहास का यह सबसे बड़ा हादसा माना जाता है जिसमें यूरोप की एक-तिहाई आबादी मारी गई। उस समय किसी भी को भी इस रोग का कारण नहीं पता था। कुछ लोग मानते थे कि बीमारी के दौरान राक्षस और चुडैलें लोगों के शरीर को दबोच लेती हैं। कुछ लोग खराब, दूषित हवा को रोग का कारण मानते थे। कुछ लोग इसे अपने खराब कर्मों का फल मानते थे। बीमारी का चाहें कुछ भी कारण रहा हो, किसी को उनके रोकथाम का कोई ज्ञान नहीं था। लोगों को यह तक नहीं पता था कि अगला काला-ज्वर कब आएगा। यह बीमारी किसी व्यक्ति को सिर्फ एक बार आती थी। यह जरूर एक आशा का चिन्ह था। अगर किसी को चेचक या खसरा एक बार हुआ हो फिर उसे यह बीमारी कभी दुबारा नहीं होती थी। यानी मरीज में उस बीमारी से लड़ने की क्षमता पैदा हो जाती थी - वो उससे 'इम्यून' हो जाता था। बीमारी से जूझने के दौरान मरीज के जिस्म में रोग का प्रतिरोध करने की क्षमता विकसित होती और फिर बरसों तक उसे वो बीमारी नहीं होती थी। चेचक एक ऐसी भयानक बीमारी थी जो केवल एक बार आती थी। पर उसका एक बार आना ही जानलेवा साबित होता था। ज्यादातर रोगी मर जाते थे। जो बचते उनके चेहरे छालों के दागों से हमेशा के लिए बदसूरत हो जाते थे। कभी-कभी किसी को हल्की चेचक होती जिससे चेहरे पर दाग भी कम होते। परन्तु चेचक हल्की हो या भीषण दोनों के बाद मरीज का प्रतिरोध उतना ही बढ़ता था। यानी चेचक की बीमारी न होने से हल्की चेचक होना बेहतर था। हल्की चेचक होने के बाद मरीज सारी जिन्दगी के लिए इस बीमारी से सुरक्षित हो जाता था। हल्की चेचक न होने से इस भयावह बीमारी का डर हमेशा लगा रहता था। 16




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