हमें कैसे पता चला सुपर कंडक्टिविटी के बारे में ? | HOW DID WE KNOW ABOUT SUPER CONDUCTIVITY

HOW DID WE KNOW ABOUT SUPER CONDUCTIVITY by अशोक गुप्ता - ASHOK GUPTAआइज़क एसिमोव -ISAAC ASIMOVपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट्रव्य-ही लियम कांच के छोटे इयूर-फ्लास्क द्रव्य- नाइट्रोजन बड़े इयूर -फ्लास्क दो इयूर-फ्लास्क ताप का आदान-प्रदान रोकते हैं ऐसा लगता है कि हीलियम को सिर्फ ठंडा करके उसे जमा कर ठोस बनाना असम्भव है. एब्सल्यूट-ज़ीरो या पूर्णय-शून्य तापमान पर भी हीलियम परमाणुओं में थोड़ी-सी ऊर्जा बाकी रह जाती है. यह ऊर्जा परमाणुओं में से निकाली नहीं जा सकती. यही कारन है कि हम पूर्णय-शून्य तापमान से कम तापमान प्राप्त नहीं कर सकते. द्रव्य-हीलियम परमाणुओं में बाकी रही थोड़ी-सी ऊर्जा उन्हें ठोस-अवस्था में परिवर्तित होने से रोकने के लिए काफी है. ओहनेस की मृत्यु के कुछ महिनों बाद, उसके एक क्षात्र, डच निवासी भौतिकशास्त्री विलैम हैंड़िक केसम (४४॥७॥ [181011९ ॥(७8685071 १८७६ - १९५६) ने अधिक दवाब और कम तापमान का प्रयोग, जैसा फैरेडे ने क्लोरीन पर किया था, हीलियम को द्रव्य बनाने में किया. उसका प्रयोग सफल रहा. जब केसम ने द्रव्य-हीलियम पर २५ वायुमंडल-दवाब डाला तो वह ११९ पर ठोस-हीलियम प्राप्त कर सका. और तो और वह टद्रव्य-हीलियम को ०.४१॥८ तक ठंडा भी कर पाया. हालांकि वैज्ञानिक तब तक ज्ञात सभी गैसों को द्रव्य और ठोस में बदल तो चुके, परन्तु अभी वे संतुष्ट न थे. वो कुछ और करने की लालसा रखते थे -- उनकी इच्छा थी एक सीमा पार करने की -- उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव तक पहुचने जैसी, एवरेस्ट पर्वत पर चढ़ने जैसी, चाँद तक रौकेट भेजनी जैसी! परन्तु न्यूनतम तापमान के विषय में सीमा पार करना संभव न था. हीलियम को द्रव्य में बदलने के दो साल पहले, सन १९०६ में, जमनी के वैज्ञानिक वाल्थर हर्मन नर्नस्ट (५४३1० 10711 ७1०» १८६४ - १९४१) ने यह साबित कर दिया कि आप एब्सल्यूट-ज़ीरो या पूर्णय-शून्य तापमान के बहुत करीब तक तो पहुँच सकते हैं, उसे प्राप्त नहीं कर सकते. इसे इस तरह समझा जा सकता है. मानलीजिये आप ४१॥९ तापमान जिस पर हीलियम द्रव्य अवस्था में से शुरू करते हैं. आपको कुछ प्रयास करना होगा जिससे कि परमाणुओं की ऊर्जा आधी रह जाय और तापमान गिर कर आधा यानि कि २१९ हो जाय. फिर उतना ही प्रयास और करना होगा जिससे परमाणुओं की ऊर्जा घट कर आधी रह जाय और तापमान गिरकर ११९ हो जाय. फिर उतने ही प्रयास की और पेज सं. |15




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