अनौपचारिका -जुलाई 2012 | ANAUPCHARIKA - JULY 2012

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रमेश थानवी -RAMESH THANVI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्मरण हकीकत सुदेश बत्रा हर शिक्षक छात्रों को कुछ सिखाता भी है और उनसे कुछ सीखता भी है कक्षा दरअसल शिक्षक के लिए एक प्रयोगशाला है वह इस प्रयोगशाला में शिक्षा को सम्पन्न होते हुए देखता है और इसके साथ ही मन ही मन कुछ सपने बुनने लगता है । इन सपनों के साथ छात्रों का भविष्य भी जुड़ा होता है और अपना भविष्य भी । हर शिक्षक चाहता है कि उसके छात्र भी सर्वोच्च शिखर पर पहुंचे और वह स्वयं भी अपनी ज्ञान साधना में नित नये आयामों का अन्वेषण करता रहे । सुदेशजी को शिक्षा का लम्बा अनुभव है और साथ ही रचनात्मक लेखन का भी । वे कविता भी करती हैं और शिक्षा को चिन्तन अनुचिन्तन में भी मगन रहती हैं । उनके शैक्षिक अनुभवों पर आधारित एक लेख प्रस्तुत है । ८ सं. बी ए, के प्रथम वर्ष में ही * मेने अपने सपने की भविष्यवाणी कर दी थी कि मैं जयपुर के महारानी कॉलेज में लेक्चरर बनूंगी-हालांकि तब न जयपुर देखा था, न महारानी कॉलेज परन्तु हालातों ने इतनी करवटें ली कि सपना जैसे उनके बीच पिसता ही रहा, मगर मरा नहीं। आखिर बरसों बाद मैंने राजस्थान यूनिवर्सिटी की खिड़की खोल ही ली। मैंने अध्यापन की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी। बस एक विश्वास था कि आज कक्षा में, मैं मेज के इस पार हूं और सारे विद्यार्थियों के चेहरे पढ़ सकती हूं, यह भी कि मैं इन सब से अधिक जानती हूं, अत: ये मुझे हूट नहीं कर सकते। मेरा मानना था कि कक्षा में केवल 'रीडिग नहीं चाहिए, बल्कि उस विषय से सम्बन्धित कुछ प्रश्न खड़े करने हैं, जिनके आधार पर बात में से बात निकलेगी। मैंने यह महसूस किया है कि अध्यापक को स्वयं कक्षा का एक हिस्सा बनना पड़ता है, अत: उसकी भाषा की सम्प्रेषणीयता, सरसता, तार्किकता और आरोह-अवरोह युक्त गंभीर ध्वनि वातावरण बनाने में बहुत कारगर होती है। यदि अध्यापक की अवधारणाए स्पष्ट नहीं हैं, यदि उसका अध्ययन और संदर्भ विस्तृत और बहुआयामी नहीं है, यदि उसका तालमेल कक्षा में निष्पक्ष नहीं है तो उसे विद्यार्थियों का रेसपान्स नहीं मिल सकता। अध्यापक उनके लिए एक रोल मॉडल होता है, उसकी व्यक्तिगत समस्याएं उसकी छवि को खंडित कर सकती हैं। उसकी सादगी और गम्भीरता विद्यार्थियों में एक निकटता और विश्वास पैदा करती है, साथ ही कक्षा में समय पर नियमित उपस्थिति विद्यार्थियों को भी अनुशासित रखती है। कई खतरे भी हैं, अत्यधिक पांडित्य अथवा अहं का प्रदर्शन, जटिल वाक्य जुलाई, २०१२




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