झारखंड दर्शन | JHARKHAND DARSHAN

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सीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में काफी सहयोग दिया था। गांव के अधिकतर छोग भारखण्ड आन्दोलन और छाछ भण्डे के समथक हैं । राजनीति के बारे में दिल्चत्व्ी रखते हैं। फिर भी गाँव में किसी के बीमार होने पर ओभा को ही बुलाया जाता है। गाँव में मैट्रिक एवं इन्टरमीडिएट तक पढ़े हुए चन्द्‌ युवक हैं, लेकिन उनका भी ओमा प विश्वास है । उसका यह मतलब नहीं कि गाँव के लोग डाक्टरी इलाज नहीं कराते हैं। वे लोग अक्सर डाक्टर के पास भी जाते हैं और उन्हें काफी मानते भी हें ' पिछले वष इसी गाँव की 19-19 वर्षीय युवती मधु, जिसकी शादी 6 महीने पूव हुई थी, अपनी माँ और पिताजी से मिलने खालबाद आयी हुई थी। गाँव . आने के कुछ दिन बाद मधु को अजीब किस्म की बीमारी हो गई | उसका स्वास्थ्य तो ठीक ही था लेकिन चलते वक्त वह कुछ दूरी तक दौड़ती थी; मानो कोई उसका पीछा कर रहा हो । चलते-चलते वह अचानक गिर जाती और बेहोशी-सी छा जाती थी। लेकिन थोड़ी देर बाद ही वह अपने आप स्वाभाविक हो जाती थी। । अल सनन .+->+>सन+++म अप - ए० ह्यन्‍लाक०-अक 1 पलक डाइन के बारे में गाँव की औरत क्‍या सोचती हैं? खालबाद में जब डाइन का मामलठा चल रहा था, उस समय कलकत्ता से कुसंह्कार विरोधी मंच “उत्स मानुष' की सक्रिय कार्यकर्ता पूरबी घोष उस गाँव में आई थी | गाँव या शहर जहाँ भी हो, महिलाय जल्द ही आपस में घुल-मिल जाती हैं और वे जो बाते मर्दों से छपाती हैं उन पर खुले दिल से आपस में चर्चा करती हैं। डाइन के मामले में पूरबी ने गाँव की महिछाओं से पूछा गाँव में तो इतनी सारी औरत हैं, फिर भी कसे कछ विशेष औरतों पर ही डाइन होने का आरोप छगाया जाता है? और वह विशेषता क्‍या है ? उसे जवाब मिला+- डाइन-विद्या जरूर कछ होता होगा। नहीं तो इतने सालों से यह विश्वास कसे अब तक टिका है? लेकिन सोचने की बात यह भी है कि क्‍यों सिफ औरतें ही डाइन होती हैं? डाइन को जो भगा सकता है, यानि ओझा, वह क्‍यों नहीं हो सकता ? कभी-कभी हम सोचती हैं कि डाइन का मामला अपने परिवार के प्रतिबिभ्ब जेता है। जो औरत पति को बात नहीं मानती है, मले ही उसकी बात मानने लायक नहीं हो, तो भी उसे रंडी” वेश्या! की गाली दी जाती है, मार-पीट किया जाता है और इस मामले में उस औरत को दबाव में रखने के लिए समाज के सारे मद एक साथ हो जाते हैं। रघु की माँ पर डाइन होने का आरोप छंगाना कितना सही और कितना रूट था वह हमें मालूम नहीं लेकिन वह औरत किसी मद की परवाह. नहीं करती समाज से डरती नहीं है। हो सकता है कि उसकी कछ विशेष क्षमता! है । लेकिन रघु की माँ के अलावा इस इलाके में डाइन के बारे में कछ घारणाये हैं। जेसे कि अगर कोई औरत शाम के वक्त शौच अथवा जड़ी-बूटी चुनने के लिए जंगल-भाड़ी में जायेगी या अपने आप से बात करती दिखाई देगी तो उस पर डाइन होने का सन्देह किया जाता है। ऐसी स्थिति में अगर गाँव में बिमारी फली, तो उस औरत पर डाइन होने का आरोप आ जाता है। अमी ह्थिति ऐसी है कि अगर किसी को भी कोई अनजान बिमारी ही गई तो डाक्टर के पास जाने के पहले गाँववाले ओमा के पास जाते हैं और डाइन को ही उस बीमारी का कारण समभते हैं। गाँव के पुरुष छोग ही मिलकर यह तय करते हैं कि डाइन कौन है। ओमा को बुलाया जाता है। ओझा भाड़-फूक करता है। दो या तीन हजार रु० जुर्माना लिया जाता है जिसका आधा हिस्सा ओभा की जेत्र में जाता है, बाकी हिस्सा गाँव के जाने-माने आदमियों के पास रह जाता है--मुर्गां और दारु के लिए । . 13




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