अनौपचारिका -अगस्त 2012 | ANAUPCHARIKA - AUG 2012
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
28
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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रमेश थानवी -RAMESH THANVI
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुझ को कुछ मोहलत ढे देना, शायद मैं कुछ सीख सकूं
मैंने बरसों मेहनत करके तुम को क्या क्या सिखलाया था
खाना-पीना, चलना-फिरना, मिलना-जुलना, लिखना-पढ़ना
और आंखों में आंखें डाल के इस दुनिया की, शायद मैं कुछ सीख सकूं
मेरी खांसी सुन कर गर तुम सोते सोते जाग उठो तो
मुझ को तुम झिड़की न देना
ये न कहना, जाने दिन भर क्या-क्या खाती रहती है
और रातों को खूं खूं करके शोर मचाती रहती है
भूल न जाना मैंने कितनी लम्बी रातें जैसे उस ने बचपन में हम कमज़ोरों पर रहम किया था
तुम को अपनी गोद में लेकर टहल टहल कर काटी हैं... भूल न जाना मेरे बच्चो
८ जब तक मुझ में जान थी बाकी
गर मैं खाना न खाऊं तो तुम मुझ को मजबूर न करना ञ
ख़ून रगों में दौड़ रहा था
९०७ की हे में के मल मेरा ढिन रन्जूर न करना दिल सीने में धड़क रहा था
स का फर्ज है मुझ को रखना खैर तुम्हारी मांगी मैं ने
इस बारे में इक दूजे से बहस न करना
आपस में बेकार न लड़ना
जिस की कुछ मजबूरी हो उस भाई पर इल्ज़ाम न धरना
मेरी हर एक सांस दुआ थी 1 ७
अब्दुल अहद, ६६ - बी, सज्जन नगर,
उदयपुर के सौजन्य से प्राप्त
गर मैं एक दिन कह दूं अर्शी, अब जीने की चाह नहीं है
यूं ही बेवजह बनी बैठी हूं, कोई भी हमराह नहीं है
तुम मुझ पर नाराज़ न होना
जीवन का ये राज़ समझना
बरसों जीते जीते आखिर ऐसे दिन भी आ जाते हैं
जब जीवन की रूह (आत्मा) तो रूखसत हो जाती है
सांसों की डोरी रह जाती है
शायद कल तुम जान सकोगे, इस मां को पहचान सकोगे ५
गर्चे जीवन की इस ढौड़ में मैं ने सब कुछ हार दिया है. कि
लेकिन मेरे दामन में जो कुछ था तुम पर वार दिया है
तुम को सच्चा प्यार ढिया है
जब मैं मर जाऊं तो मुझ को
मेरे प्यारे रब की जानिब चुपके से सरका देना
और दुआं की ख़ातिर हाथ उठा ढेना
मेरे प्यारे रब से कहना रहम हमारी मां पर कर दे
१६. अजोषधारिकां अगस्त, २०१२
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