पीरु हज्जाम उर्फ़ हजरत जी | PEERU HAJJAM URF HAZRATJI

Book Image : पीरु हज्जाम उर्फ़ हजरत जी  - PEERU HAJJAM URF HAZRATJI

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

अनवर सुहैल -ANWAR SUHAIL

No Information available about अनवर सुहैल -ANWAR SUHAIL

Add Infomation AboutANWAR SUHAIL

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8/117॥2016 मोटवानी को खबर लगी। वह भागा-भागा हजरत जी के पास आया। हजरत जी ने उससे भी यही बात बताई। मोटवानी हजरत जी को अपनी मारुति में बिठाकर बाई-पास चौराहे ले गया। वहाँ वाकई कब्रिस्तान के कोने पर एक सूखा पीपल का दरख्त था। दरख्त एक हरिजन शिक्षक चंदू भाई की जमीन पर था। चंदू भाई ने जब मोटवानी से हजरत जी के ख्वाब के बारे में सुना तो उसने तत्काल जमीन का वह टुकड़ा सैयद शाह बाबा की मजार के नाम करने का आश्वासन दिया। उसने शर्त बस इतनी रखी कि उस जमीन पर जो भी काम किया जाए उसकी जानकारी चंदू भाई को भी जरूर दी जाए। इसमें भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती थी ? हजरत जी, मोटवानी और चंदू भाई यही तीनों उस जमीन के टुकड़े के न्‍यासी बने। हजरत जी के मुस्लिम मुरीदों ने एतराज किया। इस्लामी कामों में गैरों को इतनी प्रमुखता देना ठीक नहीं। सबसे पहले बाकायदा एक कमेटी बनाई जाए। हजरत जी उसके प्रमुख न्यासी रहें और फिर सैयद शाह बाबा के दरगाह की तामीर का काम हाथ में लिया जाए। इन विरोध प्रदर्शित करने वालों में सुलेमान दर्जी और अजीज कुरैशी प्रमुख थे। हजरत जी ने उन्हें अपने ग्रुप में शामित्र तो कर लिया किंतु औपचारिक तौर पर कोई कमेटी न बनने दी। इसीलिए हजरत जी की मृत्यु के बाद मुश्किलें पेश आनी शुरू हुईं। मोटवानी ने साफ-साफ एलान कर दिया कि हजरत जी का जो हुक्म होगा उसकी तामील की जाएगी। सुलेमान दर्जी और अजीज कुरैशी मन मसोस कर रह गए। मुसलमानों की जियारतगाह पर गैर-मुस्लिमों की इस तरह की दखत्र-अंदाजी नाकाबिले-बर्दाश्त थी। किंतु किया भी क्या जा सकता था? मोटवानी और चंदू भाई की वजह से ही उस नए तीर्थ पर भीड़ बढ़ने लगी। शुरू-शुरू में जो मुसलमान इस गठबंधन को घृणा की निगाह से देखते थे, वे भी धीरे-धीरे पिघलने लगे। 4/12




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now