वापसी | VAPISI

VAPISI by पुस्तक समूह - Pustak Samuhभीष्म साहनी - Bhisham Sahni

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भीष्म साहनी - Bhisham Sahni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और फिर मुँह सिकोड़कर कहने लगी, ''यहाँ में मुझे कुत्ते की पीठ पर रोज बैठाते हैं, मगर बू के मारे मेरी तो नाक ही फटने लगती है।'' इस पर कुत्ता झुझलाया, ''तू कहाँ जंगल रहनेवाली है! तू भी तो शहरों में जगह-जगह जूठन खाती फिरती थी।/' इस पर बन्दरी ऐंठकर बोली, “क्यों जी, हमारे भाई-बन्धु तो जंगल में रहते हैं। हमें तो पकड़ा भी जंगल से गया था।'' इस पर हाथी ने गम्भीरता से कुत्ते से कहा, “तुम जंगल में करोगे क्‍या? '' इस पर कुत्ता उच्चककर बोला, ''बहाँ पर हम आपके लिए भूँका करेंगे। जिस पर कहोगे भूंकने लगेंगे, जिस पर कहोगे झपट पड़ेंगे, जिसे कहोगे काट खायेंगे... ओर नहीं तो आपके कदमों में ही लोटा करेंगे। ''इन बातों की तो इन्सान को जरूरत रहती है, हम जानवरों को इनकी क्‍या जरूरत? हम खुद ही झपट लेते हैं जिस पर झपटना होता चिड़ियाघर में चले जाओ । वहाँ तुम्हें खाना भी अच्छा मिलेगा ओर कोई छेड़-छाड़ भी नहीं होगी, ट्रेन का चाबुक भी नहीं पड़ेगा ।'' इस पर बन्दरिया घूँघट के अन्दर से ही ठहाका मारकर हँस पड़ी, “कुत्ते को चिड़ियाघर में कोन रखेगा? लोगों ने क्‍या कभी कुत्ता देखा नहीं है जो वे उसे चिड़ियाघर में देखने जायेंगे? ' ' इस पर हाथी ने फिर गम्भीरता से सिर हिलाया ओर कुत्ते से बोला, “तुम किसी मालिक के बिना नहीं रह सकते। तुम यहीं पर किसी आदमी के पास चले जाओ, वहाँ आराम से रहोगे। वह खाना भी देगा ओर करतब भी सिखायेगा।'' हाथी ने कह तो दिया पर उसने सोचा कि इससे कुत्ते के दिल को ठेस लगी होगी | पर वास्तव में कुत्ता निराश नहीं हुआ, बल्कि




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