साइकिल की कहानी | CYCLE KI KAHANI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
896 KB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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विजय गुप्ता - VIJAY GUPTA
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चला है कि गति बढ़ने के साथ यह बल कम होता है। जब पेडिलों
में ताला लगा होता है तो उनपर अधिकतम बल लगता है; परंतु काम
कुछ भी नहीं होता हे, क्योंकि पहिये रुके होते हैं। पेडिलों को एक
निश्चित गति से चलाने पर पेडलिंग द्वारा सबसे अधिक कार्य होता हे।
यह गति 45 से 60 चक्कर प्रति मिनट होती है। आजकल की नवीन
साइकिलों की तेज गति से चल पाने के लिए “बोन शेकर' को बहुत
ज्यादा तेजी से पेडिल करना होता, जो किसी भी हालत में आरामदेह
नहीं होता।
अगले पहिये को बड़ा बनाकर इस समस्या को सुलझाया जा
सकता था। जिन साइकिलों में क्रेंक पहिये से सीधा जुड़ा होगा, वहां
साइकिल पहिये की बड़ी परिधि के कारण पैडिल के एक चक्कर में
ज्यादा दूर जाएगी। दूरी बढ़ाने (और बल घटाने) के सरल सिद्धांत को
लीवर के उदाहरण द्वारा
आसानी से समझा जा
सकता है। इसके लिए जरा
पुराने जमाने के रेलवे
सिग्नल पर नजर डालें।
दायीं ओर वाले छोटे हाथ
(प्रयास) से लगे तार की
छोटी चाल से ही बायें
हाथ वाले सिग्नल (इसे
लीवर की शब्दावली में
'भार!' वाला हाथ कहते
हैं) को अधिक चाल
मिलती है। नोट करें कि लीवर के सिद्धांत के अनुसार, 'प्रयास' के हाथ
इससे ' प्रयास ' द्वारा उठाया को छोटा करके हम भार वाले हाथ को अधिक
'भार” भी उसी अनुपात हलक हल से कह साय हक
में कम होगा। 'भार' और ह्ेत्ा है जिससे बड़े 'भार' को छोटी दूरी तक
'प्रयास' के अनुपात को हिलाया जा सके।
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सिग्नल वाले
द । कोबिल का
खिचाव
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