अब्बू खां की बकरी | ABBU KHAN KEE BAKRI

ABBU KHAN KEE BAKRI by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaज़ाकिर हुसैन - ZAKIR HUSSAIN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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01 ! , | को खींचती और अजीब 1 2 0! 1 00700 आग 11717 सुबह उाब अब्बू खाँ ने दूध दुह लिया तो चौँदनी ने उनकी तरफ अपनी; जुबान में अब्बू खाँ मियाँ,.में अब हो जाएगी। मुझे तो तुम पहाड़ पर . की बोली लगे थे।* द ये भी जानें को कहती है, ये भी | “'तो फिर क्या रस्सी ने कहा, “इससे क्या क्रो है?” अादनी ने जवाब दिया लम्बी कर दूंगा।' बात है? त॑ र्् धोनी बोली, वा नहीं अरी कम नसीब, तुझे आय || श््ः कु हट कक तह आशा हः 1ध




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