मुर्गी का निराला बच्चा | MURGI KA NIRALA BACHCHA

MURGI KA NIRALA BACHCHA  by ज़ाकिर हुसैन - ZAKIR HUSSAINपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गज | सर झटक कर बोले “मैं जल्दी में हूँ। मुझे राजा के महल जाना है।” अपनी नाक चढ़ाई, पर फड़फड़ाए और चल दिए ।| कुछ दूर चले तो एक छोटा सा चश्मा मिला जिसका पानी बडी मुश्किल से कंकर--पत्थर पर बह रहा था। पानी बोला, “चूजू मियाँ आज मुझे उठने में ज़रा देर हो गई और मैं अपना रास्ता साफ न कर पाया। जरा अपनी चोंच से दो-चार कंकर तो हटा दो ताकि मैं आसानी से बह सकेँ।” मगर चूजू मियाँ ने एक न सुनी | अपना सर झटक कर बोले, “मैं जल्दी में हूँ. मुझे राजा के महल जाना है” अपनी नाक चढ़ाई, पर फड़फड़ाए और चल दिए।




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