समय और दोलक | SAMAY AUR DOLAK

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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216 समय और दोलक दोलक : प्रयोग [3 लगभग 2 मीटर लंबे धागे के एक सिरे पर एक पत्थर अच्छी तरह से बांध लो । इस पत्थर को दरवाजे की चौखट में लगे सांकल के कुंडे से लटका दो। अगर वहां कुंडा न हो या कुंडा ढीला हो, तो चौखट में एक कील ठोंककर उससे धागा बांध लो। तुम्हें प्रयोग में धागे की लंबाई बदलनी पड़ेगी। यह ध्यान में रखकर ही धागे की गांठ लगाना। इस तरह से लटकता हुआ भार ही तुम्हारा दोलक है। पत्थर को ५ एक ओर थोड़ा हटाकर छोड़ दो। ऐसा करने पर पत्थर पु स्वतंत्रतापूर्वक झूलना चाहिए। उसके इस झूलने को दोलन कु कहते हैं | दोलक का 'क' से 'ख' तक जाना और वापस 'क' (0 तक आना एक पूरा दोलन माना जाता है (चित्र 2)। यह ध्यान रखना कि दोलक को धक्का देकर नहीं चलाना है। बस एक तरफ को थोड़ा हटाओ और छोड़ दो। नाड़ी की घड़ी प्रयोग 3 को करने के लिए हर टोली में एक ऐसी घड़ी होना आवश्यक है जिसमें सेकंड की बड़ी सुई हो | अगर यह संभव न हो, तो इस अध्याय में दिए दोलक के सभी प्रयोगों को नीचे दिए गए तरीके से करना होगा। अलग-अलग व्यक्तियों की नाड़ियों की गति अलग-अलग होती है। एक व्यक्ति की नाड़ी की गति भी अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग होती है। पर अगर किसी एक व्यक्ति को आराम से बैठा दिया जाए, तो जब तक वह बैठा रहेगा उसकी नाड़ी की गति लगभग बराबर रहेगी और उसका घड़ी के रूप में उपयोग किया जा सकता है। अगर तुम चाहो तो ऐसा करके देख सकते हो। जिस टोली में सेकंड की सुई वाली घड़ी न हो, उस टोली का एक सदस्य आराम से बैठ जाए और 'शरीर के आंतरिक अंग' वाले अध्याय में दिए हुए तरीके से अपनी नाड़ी देखना शुरू कर दे | टोली का एक अन्य सदस्य दोलक को मध्य बिंदु से हटाकर पकड़े रहे और नाड़ी देखने वाले विद्यार्थी के इशारे का इंतजार करे | इशारा मिलते ही वह दोलक को छोड़ दे और उसके दोलनों की संख्या गिनना शुरू कर दे। इशारा देने के साथ ही नाड़ी देखने वाला विद्यार्थी अपनी नाड़ी की गिनती मन-ही-मन शुरू कर दे। ध्यान रहे कि गिनती '0' से शुरू हो। दोलनों की निश्चित संख्या पूरी हो जाने पर दोलन गिनने वाला विद्यार्थी नाड़ी गिनना बंद कर दे | दोलनों का समय, सेकंड़ों के बजाए, नाड़ी संख्याओं में लिखना होगा। इस प्रयोग के अंत में कक्षा के किसी अन्य विद्यार्थी या गुरूजी से सेकंड




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