झारखण्ड दर्शन क्यों ? | JHARKHAND DARSHAN KYOON?

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सीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हम क्या थे और क्या हो गय्ये हैं । ( झारखण्ड आन्दोलन को पृष्ठभूमि ) झारखण्ड क्षेत्र पर अंग्रेजों के आक्रमण के समय से जो शोषण और उत्पीड़न का राज़ कायम किया गया उसी की उपज है झारखण्ड आन्दोलन। झारखण्ड की आजाद जनता पराधीन बना दी गयी। झारखण्ड क्षेत्र लुटेरों का चरागाह बन गया। झारखण्डियों का अपना स्व छिन गया लेकिन इस क्षेत्र में आंक्रमणकारियों ने अपने लिए जो स्वर्ग बनाया उसमें झारखण्डियों को स्थान न था। होता भी कैसे ? आऑक्रमणकारियों ने अपना यह स्वर्ग तो झारखण्डियों की ही लाशीं पर तो बनाया। इस स्थिति को मिटाकर, अपनी अस्मिता और अस्तित्व. को प्रतिष्ठित करने का उनका आन्दोलन ही है झारखण्ड आन्दोलन । पहले हम जरा देखें उस प्रक्रिया को जिसके माध्यम से झारखण्डियों का स्वर्ग छीना गया । जमीन झारखण्डियों के लिए सामूहिक उपयोग के लिए प्रक्ृोति की देन थी, किसी की निजी सम्पत्ति नहीं । अंग्रेज सरकार ने चिरस्थायी बन्दोबस्त द्वारा जमीन को कोट्टे-कचहरी के माध्यम से बिक्री की चीज बना दी । आदिवासियों के निवास-स्थल एवं आजीविका के मुख्य साथन जंगलों को आरक्षित और संरक्षित बनों का नाम _ देकर आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ दिया : गया और वनों के उपयोग से उन्हें वंचित कर दिया। झारखण्डी जनता का आर्थिक जीवन दूधर हो गया । उनका सामुदायिक जीवन तोड़ दिया गया । . बनों के व्यावसाथिक उपयोग और माल- गुजारी की वसूली के अलावा झारखण्डियों के. दुख-तकलीफ के अन्य कारण भी थे। झारघण्ड : की भूमि का खनिजों से समृद्ध होना उनकी दुर्देशा -- अर्जुन भगत का एक बड़ा कारण बन गया । यहाँ लोहा और कोयला का इफरात भण्डार है जो औद्योगीकरण की प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।. पूंजीवाद की इसी जरूरत मे स्थानीय जनता के लिये एक दुष्चक्र को जन्म दिया। खदानों, उद्योगों और उनसे सम्बन्धित गतिविधियों के लिए लाखों लोगों की बेदखली, उनकी आजीविका के साधनों का विनाश आदि द्वारा उन्हे अधिकाधिक संख्या में कंगाल बना दिया गया और दूसरी तरफ उनकी - इस कंगाली और साथ ही उनकी सामुदायिक _ प्रम्पराओं और सामाजिक-मनोवेज्ञानिक संरचना का इस्तेमाल करते हुए औद्योगीकरण और मुनाफा बढ़ाने के लिए उनको सस्ते मजदूरों में बदल दिया गया । धिहभूम में लौह अप्स्क के खनन के इति-. _ हास को उदाहरणस्वरूप लीजिए . सिहभूम के कोल्हान अंचल में उच्च कोटि - के लौह-अयस्क का विशाल भंडार है। लेकिन खनिज के व्यावसाथिक उपयोग के लिए दो मूख्य चीजों की जरूरत थी --(1) खनन के लिए सस्ते में जमीन की उपलब्धि और (2) पर्थाप्त मजदूरों की उपलब्धि । 19वीं सदी के अन्त तक छोटा- गपुर में इन शर्तों को पूरा नहीं किया जा सका ॥ . सरदार आन्दोलन और बिरसा विद्रोह को जन्म देनेवाले क्ृषि-सम्बन्धी तनावों को कम करने के लिए मजबूर होकर अंग्रेजों द्वारा पारित छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम ( 0.४. /80०+ ) के कुछ पहले खदानों के लिए जमीनों के अधिग्रहण को आसान बनाने के लिए-1894 में भूमि अधिग्रहण कानून बनाया गया। यह कानून रद. के




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