मानव की कहानी | MANAV KI KAHANI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
19
श्रेणी :
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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)04 मी थे
तांबे के ज़माने का आदमी तांबे की तलवार से बहुत मज़बूत
हो गया । पर उसी समय स्त्री छोटी हो गई और सभी बातों
में पुरुष अपने को. बड़ा मानने लगा। बाहर कमाने का काम
आदमी करता। वही गायों-भेड़ों को चराता, खेत जोतता | हां,
एक और चीज़ बुरी हुई। मर्दे-औरत बाज़ार में बिकने लगे [*
पहले जब दो गुहाओं में कभी लडाई हे जाती, तो वह एक-
दसरे को मार डालते थे। उन लोगों काम था शिकार,
मछली मारना और जंगल से फल तोड़ लाना। वे सभी काम
कर लेते थे। दसरी जगहों के आदमियों को बुलाते तो खिलाना
पडता न ! अब आदमी ने आदमी को खाना छोड़ दिया था।
खेती का काम जब हो गया तो खेतों में ज्यादा काम करना
पडता । जानवर पालने लगे तो उसमें भी काम बढ़ गया । अब
जब लडाई होती, औरत-मर्दों को लाकर उनसे भी काम लेते,
वैसे ही जैसे गाय-बैल से । जिन आदमियों को पकड़कर काम
में लगाया जाता उनको दास-दांसी कहते। वह पशुओं को तरह
ही डंडों से पीटे जाते। सबसे खराब खाना और खराब कपड़ा
उनको देते । एक बार घर की मालकिन गाय का दूध दुहने
लगी । गाय कुछ बड़ी थी। दासी को उसने कहा--'री काली,
बया देख रही है ? ज्ञरा अपनी पीठ का मोढ़ा बना दे तो
7] द्वास-प्रथा का आरम्भ
काली कमर झुकाकर मोढ़ा बन गई। मालकिन उसपर बैठकर
दूध दुहने लगी । दासी के होते वह खुद दूध दुह रही थी, क्योंकि
दास-दासी तो मालिक के बछड़े की तरह थे । मालिक कहता--
'इतने बच्चे हमें नहीं चाहिए ।' बस, ले जाकर बाज़ार में बेच
देते। उस समय दास-दासियों के बाज़ार लगते थे । मां रोती रह
जाती ओर बच्चे उससे छीनकर बेच दिए जाते । तांबे के ज़माने
से दास बिकने लगे।
दास मार के डर से बहुत काम करते । सवेरे अंधेरा रहते
ही काम में जुट जाते। आधी रात उन्हें सुस्ताने की फ्रसत न
मिलती। कोई मालकिन अच्छी होती, तो दास-दासियों का
ख्याल रखती। दास धनी लोग ही रखते। पत्थर के युग में
धती-गरीब नहीं थे । जो कुछ खाने की चीज़ें जंगल में थीं, सभी
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पहले औरत मज़बूत थी, अब आदमी मज़बूत हो गया ।.
मिलकर जमा करते और इकट्ठा खाते। तांबे के युग से सब
अलग-अलग रहने लगे | अपनी चीज़ अलग रखने लगे । अब
कोई-कोई धनी होने लगे | कुछ गरीब भी । दासों के होने पर
तो धनी और भी धनी होने लगे ।
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लोग दुधारू पशुओं का दूध दुहते थे ।
तांबे वाला जमाना दो-ढाई हज़ार बरस से अधिक रहा।
उसी समय आदमी ने मिनती सीखी । अच्छर नहीं था। हां,
उसी समय दो मुन्ता-मुन्नी भाई-बहन थे । मुन्ना छोटा था और
मुन्ती बड़ी । मुन्नी अम्मा-यापा की बात मान जाती, लेकिन
मुन्ता नहीं मानता था । मुन्ते का दोष भी नहीं था।
तो मुन्ना बात कभी नहीं मानता था। यह बात सबको
मालूम हो गई मुन््ने के मन में एक नहीं दो मुन्ने थे । दोनों की
देह एक थी, मन दो । जब अम्मा-पापा कोई काम करने को
कहते, तो बदमाश मुन्न् पहले ही बोल उठता--“नहीं, यह काम
नहीं करता है ।'
बेचारा मुन्ता कहता--बहुत समझाता, पर वह जो शैतान
मन में बेठा हुआ था, बात ही नहीं मानता था । मुन्ना ने एक
दिन पापा की बात न मानकर उन्हें नाराज़ कर दियां था । उस
समय नाराज़ हो जाने पर अम्मा-पापा बहुत पीठ दिया करते
थे | मुन्ने को पिटाई का उतना दुःख नहीं था | उसकी बहन ने
. पोठ सहलाई और प्यार किया । अपने भैया का मुंह भी चमा।
और कहा--'भैया, तू ऐसा क्यों करता है ?” मुन्नू बहन के गले
से लिपटकर कहने लगा--दीदी, मेरे मन में तो दो जने घुसे
हुए हैं। एक तो अच्छा है, कहता है--अम्मा-पापा हमें कितना
प्यार करते हैं! हमारी भलाई जितनी वह चाहते हैं, वैसी
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