स्त्री का पत्र | STREE KA PATRA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
460 KB
कुल पष्ठ :
5
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाय-भैंस को देखने गोशाला में गयी तो देखा
एक कोने में पड़ी थी बिन्दू। मुझे देख फफक
कर रोने लगी। '
बिन्दू ने कहा कि उसका पति पागल है।
बेरहम सास ओर पागल पति से बचकर वह
बड़ी मुश्किल से भागी । को
गुस्से और घृणा से मेरे तन बदन में आग
लग गई । मैं बोल उठी, “ “इस तरह का धोखा
भी भला कोई ब्याह हे? तू मेरे पास ही रहेगी ।
देखूँ तुझे कोन ले जाता है।''
तुम सबको मुझ पर बहुत गुस्सा आया।
सब कहने लगे, ''बिन्दू:के ससुराल वाले उसे
लेने आ पहुँचे ।
मुझे अपमान से बचाने के लिए बिन्दू खुद
ही उन लोगों के सामने आ खड़ी हुई । वे लोग
बिन्दू को ले गये । मेरा दिल दर्द से चीख उठा ।
में बिन्दू को रोक न सकी । में समझ गयी
कि चाहे बिन्दू मर भी जाए वह अब कभी
हमारी शरण में नहीं आएगी। आज
तभी मेंने सुना कि बड़ी बुआजी
जगन्नाथपुरी तीर्थ करने जाएंगी। मैंने कहा,
“में भी साथ जाऊँगी।''
मेंने अपने भाई शरत को बुला भेजा।
उससे बोली, “भाई अगले बुधवार मैं पुरी
जाऊँगी। जैसे भी हो बिन्दू को भी उसी गाड़ी
में बिठाना होगा।''
उसी दिन शाम को शरत लोट आया।
उसका पीला चेहरा देखकर मेरे सीने पर साँप
लोट गया। मैंने सवाल कियां, ''उसे राजी
नहीं कर पाये? ''
“उसकी जरूरत नहीं । बिन्दू ने कल अपने
आपको आग लगा कर आत्महत्या कर
ली ।'' शरत ने उत्तर दिया । मैं स्तब्ध रह गयी ।
मैं तीर्थ करने जगननाथपुरी आई हूँ। बिन्दू
को यहाँ तक आने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
लेकिन मेरे लिए यह ज़रूरी था।
जिसे लोग दुख-कष्ट कहते हैं, वह मेरे
जीवन में नहीं था। तुम्हारे घर में खाने-पीने
की कमी कभी नहीं हुई। तुम्हारे बड़े भैया
का चरित्र जैसा भी हो, तुम्हारे चरित्र में कोई
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